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10] चरणानुयोग
उ०- भावप्यमाणे तिविहे पण्णत्ते तं जहा
१. गुणमाणे २. यप्यमाणे, २. संखष्पमाणे " - अणु० सु० ४२७
[५० ] कि जीव?
उ०
तं
जहा
१. जाणगुणत्वमाणे २. दंसणगुणध्पमाणे, १. बरिस गुणप्यमाने । - अणु० सु० ४३५
माणगुणश्यमार्ण
२५.० भागमा ?
उ०- णाणगुप्यमाणे चउष्यि पण्णसे, तं जहा१. पच्चमले, २. अणमाणे, २. ओषम्मे, ४. आगने ।
प० से. किं तं पच?
उ०- पचनले तुविहे पण तं जहा
हंदि १०- से कि सं इंदियपचचक्ले ?
० इंडियन पंचतं महासोमबा इंदिपव्य
ज्ञान गुण प्रमाण
से
२६. ५० - से कि तं नो इंदिपञ्चष ?
२. नो विषय ।
०नो इंडिजे तिविहे पण तं जहा - १. ओणपच्चमखे, २. मणपज्जश्रणाणपश्चमले
२.
सेन।
२७. १० - से किं तं अणुमा
० अनुमानेतिविहे पण्णत्ते, सं लहा१.२.२ बिट्ट साहब।
सूत्र २४-२७
उ०- भाव प्रमाण तीन प्रकार का कहा गया है। यथा-(१) गुण प्रमाण (२) नय प्रमाण, (३) संख्या प्रमाण ।
प्र० - जीव गुण प्रमाण कितने प्रकार का है ? उ०- जीव गुण प्रमाण तीन प्रकार का कहा गया है। यथा-- ( १ ) ज्ञान गुण प्रमाण, (२) दर्शन गुण प्रमाण, (३) चारित गुण प्रमाण ।
ज्ञान गुण प्रमाण
२५. प्र० - ज्ञान गुण प्रमाण कितने प्रकार का है ?
उ० – ज्ञानगुण प्रमाण चार प्रकार का कहा गया है। यथा— (१) प्रत्यक्ष, (२) अनुमान, (३) उपमा, (४) आगम 1
प्र० - प्रत्यक्ष कितने प्रकार का है ?
उ०- - प्रत्यक्ष दो प्रकार का कहा गया है । यथा(१) इन्द्रियप्रत्यक्ष (२) मो
प्र० - इन्द्रिय प्रत्यक्ष कितने प्रकार का है ?
उ०- इन्द्रियप्रत्यक्ष पाँच प्रकार का कहा गया है। यथाश्रोत्रेन्द्रिय प्रत्यक्ष - पावत् स्पर्शेन्द्रिय प्रत्यक्ष ।
इन्द्रिय प्रत्यक्ष समाप्त
२६. प्र० - नो इन्द्रिय प्रत्यक्ष कितने प्रकार का है ?
उ०- नो इन्द्रियप्रत्यक्ष तीन प्रकार का कहा गया है। यथा - ( १ ) अवधिज्ञानप्रत्यक्ष (२) मनः पर्यवज्ञानप्रस्थक्ष, (३) केवलज्ञानप्रत्यक्ष
नो इन्द्रियप्रत्यक्ष समाप्त । प्रत्यक्षसमाप्त ।
प्र० – अनुमान (प्रमाण) कितने प्रकार का है ?
उ० – अनुमान तीन प्रकार का कहा गया है। यथा(१) (२) वत् (३) दुष्टसाधर्म्यवत्
१. सम्भ चरिते पढने १. दंसण, २. नाणे य, ३. दाण, ४. लाभे य
५. उभोग, ६. भोग, ७. वीरिय, ८ सम्म ६. चरिते तह बीए ||
(ङ) ४ चउनाण ३ प्राणतियं, ३ दंसणतिय ५ पंचदाणलडीओ ।
१ समतं १ चारितं चं १ संजमासंजमे तद्दए ||
४ चउगड़, ४ चउकसाया ३ लिगत्तियं ६ लेसछक्क १ अनाणं ।
१ मिच्छत १ मसिद्धत्तं १ असंजमे तह चध्ये उ ॥ ॥
पंचगम्य भावे, १ जीव, २ अभव्यत्त, ३ भव्वत्ता क्षेत्र,
पंचविभावा भेया एमेव वा ॥ ॥
-स्थानांग टीका से उद्धत
१ (क) यहां गुणप्रमाण और नयप्रमाण लिए हैं- संख्याप्रमाण गणितानुयोग (काल प्रमाण पृ० ६९१ से काललोक में तथा क्षेत्रमाण परिशिष्ट २ पृ० ७५४ पर) में दिया गया है।
(ar) इससे आगे का एक सूत्र द्रव्यानुयोग में दिया है।