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& मिलतो । प्रथम तो उस नदी का जल ही अत्यन्त खारा, उष्ण और दुर्गन्धित है, फिर उसमें अगणित 3
मगरमच्छ आदि भयानक जल जन्तु मुंह फाड़े हुए खाने को दौड़ते हैं । तब वह नारकी उनसे भी
असोम वेदना पाकर बाहर भागता है और किनारे पर खड़े हुए बन वृक्षों को देख कर शान्ति और ४ & शीतलता पाने की लालसा से उस बन में प्रवेश करता है । परन्तु पापी जीवों को शान्ति कहां ? जैसे 8 हो वह नारको बन के भीतर पहुंचता है, वैसे ही प्रचंड वेग से आंधी चलनी प्रारम्भ हो जाती है और 8 ऊपर से तलवार को धार के समान तीक्ष्ण पत्ते बनदंड के समान डालियां और लोहे के गोले के समान ४ फल गिरने प्रारम्भ हो जाते हैं, जिससे उसके अंग-उपंग छिन्न-भिन्न हो जाते हैं। उसी समय उन वृक्षों पर & बैठे हुए गिद्ध, गरुड़, काक, चोल प्रावि तोक्षण और बभ्रमय चोंच वाले मांस भक्षी पक्षो उस पर टूट ल 8 पड़ते हैं, और उसके शरीर का मांस लोंच-लोंच कर खाने लगते हैं । इसी समय पुराने नारको आकर 8 & उसे मुद्गर, मूसल से मार-मार कर चूरा चूरा कर डालते है और ऊपर से नमक मिर्च जैसे तोक्षण 8 पदार्थ उसके शरीर पर डाल देते हैं, जिससे पीड़ित होकर छटपटाने लगता है, हाय, हाय, विलाय
करता है और मूच्छित होकर भूमि में गिर जाता है, ऐसे ही तीन नरक पर्यन्त अम्बारोष आदि नीच जाति के कर स्वभावी असुर देव आकर पुराने नारकियों को सम्बोधित करते हुए पूर्व भव को याद दिलाते हैं और उन्हें पुनः आपस में लड़ाने के लिए तय्यार कर देते हैं और लड़ाते हैं जैसे यहां तीतर आदि लड़ाते हैं । उन नरकों में शोत को वेदना इतनी अधिक है कि यदि मेरु पर्वत के समान विशाल लोहे का गोला डाला जाए, तो वह जमीन तक पहुंचने के पूर्व ही अधर प्रदेश में नमक की डली के 8 १२ समान गलकर बिखर जायगा । इसी प्रकार उष्ण नरकों में इतनी अधिक उष्णता है कि मेरु समान लोहे & का गोला तल प्रदेश तक पहुंचने के पूर्व ही मोम के खण्ड के समान पिघलकर पानी-पानी हो