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छह
ॐ है। देव और नारकियों के जो अवधि ज्ञान होता है उसे भव प्रत्यय अवधि कहते है । क्योंकि, वह देवल 8 या नरक पर्याय के निमित्त से उत्पन्न होता है । नारकी के सबसे छोटा भवप्रत्यय अवधिज्ञान होता है और
देवों के सबसे बड़ा भवप्रत्यय होता है। मनुष्य और तिर्धचों के जो अवधिज्ञान होता है उसे क्षयोपशमिक अवधि ज्ञान कहते हैं । यह अवधि ज्ञान तीन प्रकार का है । देवावधि, परमावधि और सर्वावधि देव, नारको और तिर्यचों के देशावधि ज्ञान होता है, किन्तु मनुष्यों के तीनों प्रकार का अवधि ज्ञान
हो सकता है उसमें भी परमावधि और सविधि तो तद्भव मोक्षगामी संयमी मनुष्य के ही होता है । & इस मिलान के द्वारा पिटले ना अपामो भवों का वर्णन जीवों के पारस्परिक खोई, गुमी या
चुराई गई वस्तुओं का परिज्ञान, गढ़े हुए और नष्ट हुए धन आदि का बोध होता है । मनःपर्यय ज्ञान द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव को मर्यादा लिए हए दूसरों के मन की बातों को जानने वाले जन को मनःपर्यय
ज्ञान कहते हैं। इस मनःपर्यय ज्ञान के दो भेद है--ऋजमति मन:पर्यय ज्ञान और विपुलमति मनः 3. पर्यय ज्ञान । जो दूसरे के मन को सीधी या सरलता से सोची गयी बात को जाने वह ऋजुमति मनःपर्यय
शान है. और जो कुटिलता पूर्वक चिन्तन की गई या न को गई मनकी बात को जाने उसे विपुलमति मनःपर्यय ज्ञान कहते हैं । ऋजुमति मनःपर्यय वाला अपने या दूसरों के साथ आठ भवों तक के मन की बात को जान सकता है, किन्तु विपुलमति बाला असंख्यात भवों तक को सोचो अर्ध विचारो आदि मनकी बातों को जान सकता है । ये दोनों शान महान संयमी साल के हो होते है । इनमें विपुलमति मनःपर्यय ज्ञान तद्भव मोक्षगामी महान संयमी पुरुष के होता है और केवल झान जो त्रिकालवों समस्त द्रव्यों को और उसके अन-त गुणों और अनन्त पर्यायों को एक साथ हस्ताग्रमा- & वत् जाने उसे केवलशान कहते हैं। चार घातिया कर्मों के, तीन आयु कर्म के, तेरह नाम कर्म प्रकृति