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& धारण करके कर्मों का नाश करके मोक्ष पा जाता है । भावार्थ-अत भंग न हो जाय, इस प्रकार ४
को सावधानी रखते हुए भी विषयों को उद्यम प्रवृत्ति या कषायों के आवेश से व्रत के एकदेश भंग @ हो जाने को अतिचार कहते हैं । ऊपर जो श्रावक के बारह मत बतलाये गये हैं, उनमें से प्रत्येक
के पांच पांच अतिचार कहे गये हैं । अब यहां पर क्रम से उनका वर्णन करते हैं। उनमें प्रथम श्रावक 8 के ८४ गुण होते हैं तहां आठ मूल गुण और बारह उत्तर गुण, प्रतिपालन, सात घ्यसन और पच्चीस
सम्यक्त्व के दोषों का परित्याग, बारह वैराग्य भावना का चिन्तवन, सम्यग्दर्शन के पांच अतिचारों का त्याग, प्रशम, संवेग, अनुकंपा, आस्तिक्य भावना का स्मरण तथा मंत्री, प्रमोद, कारुण्य, माध्यस्थ भाव विचार, तोन शल्य का त्याग, भक्ति भावना रत्नत्रय युक्त ऐसे ८४ गुण युक्त होते हैं।
(१) अहिमाणुनत के अतिचार-१. किसी जीव के हाथ पांव नाक कान आदि अंग उपांग का छेदना काटना, उन्हें छेव कर दुःख पहुंचाते हैं, यह छेदन नाम का अतिचार है । २. गाय भैस & घोड़ा हाथो आदि को संकल या रस्मो आवि से बांध कर रोके रखना, बंधन नाम का अतिचार है । 8 ३. जीवों को लकड़ी कोड़ा चाबुक आदि से मारना पीड़ना पौटना, ये पीड़न नामक अतिचार है।
४. जो पशु वा मनुष्य बिना किसी कष्ट का अनुभव किये जितना बोझा लादकर ले जा सकता है, ४ उससे अधिक भार का लादना, अत्ति भारारोपण नामक अतिचार है । ५. अपने आधीन नौकर चाकर ४ और गाय भैस आदि को समय पर खाना पीना न बेफर भूखा प्यासा रखना, अन्न पान निरोध नाम & का अतिचार है। यहां इतना विशेष जानना कि प्रमाद व कषाय के थश होकर जो मारपोट आवि & की जाती है, उससे हो व्रत में अतिचार लगता है । अंतरंग में सुधार की भावना से किसी अपराधी
को दंड देने पर अतिचार नहीं लगता है ।