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हाला
6 तुरंग लगाम से रोक दिये जाते हैं, जो रत्नत्रय युक्त मुनि के आत्रय द्वार को रुक आने पर नवीन 8 कर्मों का आनव नहीं होता, मिथ्यात्य अविरत प्रमाव कषाय योग इन से जो कम आते हैं, वे सम्य
दर्शन विरत कवाय निग्रह योग निरोध इनसे यथाक्रम कर नहीं आते, इस संवर भावना का फल मोक्ष
है इस कारण संबर के साधन बनाकर ध्यान कर सहित हुआ सब काल यत्न में लगा देवो, ऐसा & निर्मल प्रात्मा होकर इस संवर का घिन्तवन करो, कल्याण होगा।
भावार्थ-आचार्य ग्रंथकारों ने पाप को लोहे को बेड़ो और पुण्य को सुदर्ण को वेडो कहा है क्योंकि दोनों के बार यंथे हुए मनुष्य स होकार दुःश को अनुभव करते हैं । इसलिए जानी पुरुष ल पुण्यालय और पापानव को छोड़ कर प्रात्मानुभव का प्रयत्न करते हैं । कर्मों के आगमन को रोकने 8 के लिए तीन गुप्ति, पांच समिति, दश धर्म, बारह भावना, बाईस परोषह जय और पांच प्रकार के 8 चारित्र को धारण करने की आवश्यकता है। मन वचन काय की चंचलता को रोकना सो गुप्ति है, & गमनागमन आदि में प्रभाव को दूर करना सो समिति है दयामयी उत्तम क्षमावि का धर्म को धारण ४ करना सो धर्म है । संसार, बेहादि का चिन्तवन करना सो अनुप्रेक्षा है भूख प्यास आदि को बाधा को उपशम भाव से जोतना सो परिषह जय है। राग द्वेष छोड़कर सद् ध्यान में तल्लीन होना और आत्म स्वरूप का चिन्तवन करना सो चारित्र कहलाता है। ये सब संवर के कारण हैं । उन्हें धारण कर, हे आत्मन् ! तू आते हुए कर्मों को रोक जिस से कि संसार रूपी समुद्र में तेरा आत्म रूपो यह उत्तम जहाज छिद्र रहित होकर निरुपद्रव हो जाय । तू गुरित आदि का धारण करना कठिन मत 8 समझ, उनका पालना अत्यन्त सरल है । देख पहले विकथाओं के कहने सुनने से अपने आपको बचा ४ फिर पर पदार्थों से ममता का नाता तोड़ और अपने स्वरूप को भावना कर, गुप्ति प्रादि तो तेरे हाय 8