Book Title: Chahdhala 2
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 144
________________ छह ढाला परिग्रह त्याग महावत है । यहां परम्परा करके उंचमगति जो मोक्ष तिसका कारण है । इसलिये उपमा रहित सुख के स्थान जो आत्मा उसकी प्राप्ति के लिए अपने आत्मा में निवास स्थान बनाकर स्थित रहे। जो स्थिति चलाय मान न हो और सुख का स्थान हो यो कि जगत के जनों को दुर्लभ हो अर्थात् आत्म स्वभाव में लीन होना सुलभ नहीं किन्तु दुर्लभ है, तथापि साधु पुरुषों के लिये कोई बड़े आश्चर्य की बात नहीं है। इस प्रकार पंचम महावत का वर्णन हुआ। अब आगे पांच समितियों का वर्णन लिखते हैं जो साधु निर्दोष मार्ग से दिन में चार हाथ जुड़ा प्रमाण जमीन को देखकर अपने गुरु यात्रा के लिये नगर से बाहिर प्राणियों को पीड़ा नहीं देते हुए संयमी का जो गमन है वह ईर्ष्या समिति है, निश्चय नय से अमेव उपचार रहित जो रत्नत्रय का मार्ग उस मार्ग रूप परमधर्म के द्वारा अपने आत्मा स्वरूप में सम्यक् प्रकार परिणमन होना, सो ईर्ष्या समिति है । अर्थात् अपूर्व स्वभाव से ही शोभायमान तन्य के चमत्कार मात्र में एकता को प्राप्त करता है और सदा पर स्वरूप से अलग ही रहता है, अपने स्वरूप में गमन करता है और त्रस स्थावर जीवों के घात से दूर है। संसार रूपी अग्नि की तप्त को शान्त करने के लिये मेघमाला के समान है संसार रूपी समुद्र से तिरने के लिये श्रेष्ठ जहाज है, जो कि निश्चय समिति अभेद, उपचार रहित रत्नत्रय का मार्ग परम धर्म के द्वारा अपने आत्म स्वरूप में रमण रूप परिणाम परिरमण रूप होता निश्चय ईय समिति मूल गुण है । आगे भाषा समिति लिखते हैं जो दुष्ट मनुष्य पर की अप्रीत करे, वह कठोर बचन है, झूठा दोष लगाने रूप पशून्य, व्यर्थ हंसना हास्य, जो कि सुनने वाले दूसरे के दोष प्रगट करने रूप पर निन्दा वचन है और आरम 333333 333333333

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