Book Title: Chahdhala 2
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 148
________________ & गुप्ति के धारक मुनि पापरूपी धनी को जलाने के लिए ज्वालामालनी हैं। वह योगियों में शिरोमणि होता हुआ अनन्त चतुष्टय का लाभ कर उसमें स्थित रहता हुआ जीधन मुक्ति अवस्था का भोगी होता है। यह तीन गुप्तियों का वर्णन हुआ। पांचों इन्द्रियों के विषयभूत स्पर्श, रस गन्ध, वर्ण ढाला और शब्द यदि शुभ प्राप्त हो तो वे उनमें रमण नहीं करते और यदि अशुभ प्राप्त हो तो वे उनमें & विरोध नहीं करते। इस प्रकार साधुजन वे पंचेन्द्रिय विनयी पद को प्राप्त करते है । भावार्थ-यह पांचों इन्द्रियों के विषय शरीराधीन हैं तो यह शरीर रस, रुधिर, मांस, मेदा, ४ हड्डी, वीर्य, मल, मूत्र, पीप और अनेक प्रकार के कीड़ों से भरा हुआ है। इसके सिवाय यह शरीर ४ दुर्गन्धमय है, अपवित्र है, चमड़े से लपेटा हुआ है, अनित्य है, जड़ है और नाश होने वाला है। बह होर अनेक APTE के दुनों का पात्र है, कम समूह समझने का कारण है और निजानन्द 8 आत्मा से सर्वथा भिन्न है, ऐसे मारीर के सन्तान पांचों इन्द्रियां है। शरीर के नाश के साथ साथ 8 इन्द्रियों का भी नाश हो जाता है। इसलिये मुनिज इन्द्रिय स्वभाव को जानकर इससे स्नेह नहीं & करते हैं। सिर्फ इस शरीर को धर्मानुष्टान का कारण जानकर शरीर से धर्म सेवन करने के लिए 8 और मोक्ष में पहुंचने के लिए जैसे गाड़ी चलाने के लिए धुरा पर चीकट लगाते हैं ऐसे हो थोड़ा सा रस नीरस आहार लेते हैं। बिना आहार के यह शरीर चलता नहीं, यह चारित्र पालन का साधन है। अब छह आवश्यक और शेष सात मूलगुणों का वर्णन करते हैं समता सम्हारै थुति उचारै वन्दना जिनदेव को । नित करें श्रुति रति धरै प्रतिक्रम तजै तन अहमेव को। जिनके न न्हौन न दंत धोवन लेश अंबर आवरन ।

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