Book Title: Chahdhala 2
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 153
________________ लक्षण धर्म, अनित्यादि द्वादश भावना, परिषह जय अं चारित्र आदि सम्यक अनुष्ठान द्वारा आत्म & ध्यान रूप निश्चल अग्नि के प्रयोग से कर्म रूपी ईन्धन के भस्म होने पर वह आत्मा भी स्वसिद्धि को प्राप्त कर लेता है और देह से ममत्व के भाव को याग देता है, वह कायोत्सर्ग मूल गुण है । छात् केशलोंच का स्वरूप-ओ मुनि प्रतिक्रमण पूर्वक उपवास सहित उस्कृष्ट दो महीने, मध्यम तीन महीने, जघन्य चार महीने में अपने शानले प्रसनक ही कर लेगों का उपाडना यह लोच नामा मूल गुण हैं। अचेलकपना-कपास, रेशम, रोम, सन, धर्म आदि से बने हुए वस्त्र से शरीर का आच्छाबन नहीं करना, भूषणावि नहीं धारण करना, संयम के विनाशक द्रव्यों कर रहित होना, अचेलक मूल गुण हैं। स्नान-इससे हिंसा का उपार्जन रूप दोष, प्रक्षालन दोष, याचनादि दोष नहीं होते हैं । जल से न्हाना रूप स्नान, अंजन, मंजन, उबटना, पान खाना, चंदनादि लेपन इस तरह स्नानादि क्रियाओं के छोड देने से जल्ल मल्ल स्वेद रूप वेह के मल कर लिप्त हो गया है सब अंग जिसमें & ऐसा स्नान नामा महान गुण मुनि के होता है। क्षितिशयम-जीव वाधा रहित, अरूप संस्तर रहित, असंजमी के गमन रहित, गुप्त भूमि के 8 प्रदेश में बंड के समान अथवा धनुष के समान एक पसवाड़े से सोना क्षितिशयन मूल गुण है। ___अवंत-अंगुली, नख, दांतौन, तृण विशेष, पंनो, कंकणी वृक्ष को छाल, वक्कल आदि कर दात मल को शुद्ध नहीं करना, दांतान नहीं करना, वह इन्द्रिय संयम की रक्षा करने वाला अवंतपना मूल गुण है।

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