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8 द्रयों के अनन्त गुण और पर्याय एक साथ प्रतिबिम्बित होने लगते हैं। मुक्त जीव जिस प्रकार सिद्ध
अवस्था को प्राप्त हुए हैं उसी प्रकार आगे अनन्तानन्त काल तक मोक्ष में रहेंगे । उनमें कभी भी रंच मात्र परिवर्तन नहीं होगा। जिन जोधों ने तर भव पाकर मोक्ष प्राप्त करने का महान् कार्य किया है वे धन्य हैं-धन्य हैं और उन्होंने ही अनादि काल से संसार में परिभ्रमण कराने वाले पंच परावर्तनों ४ का त्याग कर के मोक्ष का उत्तम सुख प्राप्त किया है। यहां आचार्यों ने सिद्धों के आठ गुणों में सायकल समयक्त्व को गिनते हैं और कुछ आकाचे अनन्स सुख को , शो इस पोईव नहीं जानना चाहिए। क्योंकि मोहनीय कर्म के दो भेद हैं-दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीय। इन में एक का प्रहण करना सो यह अपनी-अपनी यिथक्षा है।
विशेषार्थ-जिस आकार प्रकार और रूप में सिन अवस्था प्राप्त होती है उसी आकार 8 प्रकार और रूप में वे अनन्तानन्त काल तक ज्यों के त्यों चराचर विश्व को जानते देखते हुए विराजमान रहते हैं । सिद्ध जीव कभी भी संसार में लौट कर नहीं आते । ज्ञान, दशन, सुख, 8 वीर्य, आन्मद सर्व लोकातिशायो मर्यादातीत और अनुपम होता है। वे सदा सदा के लिए जन्म, नरा ४ मरण, रोग, शोक, भय आदि संसारिक झंझटों से मुक्त हो जाते हैं । संसार में अपणित कल्पकारों के व्यतीत हो जाने पर भी सिद्ध जीवों के कमो कोई विकार नहीं उत्पन होता है । संसार में त्रिलोक्य
को चलायमान कर देने वाला मी उत्पात हो जाय, तो भी मोक्ष में कमो कोई अय्यवस्था नहीं होती है & किन्तु सिद्ध जीय सवा काल किट्टिमा कालिमा से रहित तपाये हुए सौ च सुवर्ण के समान प्रकाशमान
स्वरूप में विराजमान रहते हैं और अनन्त आनन्दामृत का पान करते हुए संसार का नाटक देखा करते हैं।
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