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स्थिति भोजन-अपने कर पात्र रूप भाजन कर भौंत आदि के आश्रय रहित चार अंगुल के 8 8 अंतर से सम पाद खड़े रह कर अपने चरण की भूमि, सूटन पड़ने को भूमि, जिभाने वाले जम के 8
प्रदेश की भूमि-ऐसे समान तीन भूमियों की शुद्धता से बातार का दिया हुआ आहार सम भावों से लाल प्रहण करना यह स्थिति भोजन नामा मूल गुण है ।
एक भुक्त का स्वरूप कहते हैं-सूर्य के उदय, मध्य और अस्त उदय काल की तीन घड़ी 8 छोड़कर, तीन मूहूर्त काल में एक बार भोजन करना वह एक भुक्त मूलगुण है ।
भवार्थ--जो साथ् दिन में एक बार उत्तम धाबक के द्वारा नवधा भक्ति युक्त के बल संयम और ज्ञान की वृद्धि के लिए उदराग्नि प्रशमन, अक्ष प्रक्षण, गोधरी, पर्त पूर्ण, भ्रामरी। इनका खुलासा- 8 जितने आहार से उदर की अग्नि शान्त हो जाये, उतना ही आहार लेना, अधिक न लेना, यह उनराग्नि प्रशमन है। जिस प्रकार गाड़ी को चलाने के लिए उसके पहिये को तेल डाला है क्योंकि तेल। के बिना गाड़ी चल नहीं सकती, इसलिये इस पारीर को चौदहवें गुण स्थान पहुंचना है और आहार देना अक्ष प्रक्षण विधि है। जिस प्रकार गाय को चारा भूषा डाला जाता है उस समय वह गाय भूषा 8 डालने वाले की सुन्दरता या आभूषण आदि को नहीं देखती है, वह भारे को देखती है। उसी
प्रकार साधु आहार के समय अमीर गरीब घर या सुन्दरता नहीं देखता केवल आहार से हो प्रयोजन 8 रखना, गोचरी वृत्ति है।
__जिस प्रकार किसी गड्ढे को मिट्टी कूड़ा आदि चाहे जिस से भर देते हैं उसी प्रकार इस उबर & को अच्छे बुरे रस निरस सवण अलवण आदि आहार से भर लेना गतं पूर्ण विधि है। भ्रमर जिस
प्रकार पुष्पों को नहीं सताता हुआ उनका रस लेता है उसी प्रकार किसी भी गृहस्थ को कष्ट न देते