Book Title: Chahdhala 2
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 142
________________ मिथ्या बुद्धि से संसार में मोह के कारण उस मिथ्या भाव को रक्षा के अर्थ असत्य बोलता है, उनको & जो सम्जन मन त्याग देता है, उसके सस्य महावत होता है । आगे तोसरे अचौर्य धत को लिखते हैं जो कोई साधु ग्राम में, नगर में या जंगल में दूसरे को वस्तु को धरी देख उठा लेने के परिणामों को त्याग देता है उसी साधु के यह तोसरा महावत होता है। भावार्थ-जो कोई वस्तु चेतन अचेतन ग्राम आदि में पड़ी हुई, भूली हुई रक्खी हुई, जंगल के फल फूल पत्रादि दूसरे को वस्तु घरी हुई देख कर उसको उठा लेने के परिणामों को त्यागता है अर्थात् गांव, नगर, बन में दूसरे के द्वारा रक्खी हुई, पड़ी हुई वा भूली हुई पर द्रव्य को को त्यागता 8 है उसके हो यह तीसरा अचौर्य महाग्रत होता है। जो वस्तु अपने परिश्रम से किसी का कुछ काम & करके मिले या दूसरा सन्मान कर या दया कर देवे यह वस्तु ग्राहा है। इसके सिवाय कहीं को किसी 8 चीज को भो लेना चोरी है । यह अथौर्यधत अपूर्व बल का दाता है, इसके पालन कर्ता को पुण्य & के उदय से अतिशयरूप रत्नों का ढेर प्राप्त हो जाता है और क्रम क्रम करके मुक्ति रूपी स्त्री काल पति हो जाता है। इसलिये उस अचौर्य ग्रत का पालन करो। अब आगे ब्रह्मचर्य महायत का स्वरूप लिखते हैं जो वृद्धा, बाला, यौवन वाली स्त्रियों के रूप को देख कर या उनकी तस्वीरों वा चित्राम धातु पाषाण मिट्टी आदि रूप योक्न लावण्यता को देखकर या उनके सुन्दर मनोहर अंगों को देखकर जो उनसे कीड़ा करने की मनोवृत्ति को बम में कर लेना और भोग इच्छा का निरोध कर देना अथवा वेदना नोकषाय के तीच उदय से मथुन सेवन को इच्छा का होमा उसको त्यागने से यह बहचर्य शत होता है । स्त्रीमात्र को माता बहिन पुत्री समान समझ, स्त्री सम्बन्धी कथा, कोमस बधन

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