Book Title: Chahdhala 2
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 139
________________ & देते हैं, इसलिए उनके सर्व प्रकार की द्रव्य हिंसा दूर हो जाती है । तथा राग, द्वेष प्रादि विकार भावों 0 के निवारण कर देने से उनके भाव हिंसा भी नहीं होती । इस प्रकार वे पूर्ण अहिंसा महावत का भाव करते हैं । उन मुनिराजों के बचन लेया मात्र भी असत्य नहीं होते हैं, इसलिए वे परपूर्ण सत्यमहानत के धारक होते हैं, अतएव निर्दोष अचौर्य महायत का पालन करते हैं। वे अठारह हजार शोल के भेदों को धारण करके सदा चैतन्य ब्रह्म में रमण करते हैं और इस प्रकार पूर्ण ब्रह्मचर्य महावत का 8 परिपालन करते हैं। भावार्थ-साधु गण हिंसा प्रादि पांचों पापों के सर्वथा स्थूल और सूक्ष्म रूप से त्यागी होते & हैं । किन्तु जिनको प्रात्म ज्ञान नहीं है केयल वाह्य सुख का त्याग कर साधु बन गये हैं वे कठिन ४. तपश्चरण करने पर भी मोक्ष मार्ग के अधिकारी नहीं हैं, जो सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के साथ साथ जिन लिंग अहिंसादि पंच महाव्रत को धारण-पालन करता है और तपश्चरण करता है तो मोक्ष& मार्गी है और हिंसा, झूठ, चोरी, कुशोल और पापाचरण रूप परिणाम, क्रोध, मान माया लोभ, मोह रूप परिणाम, मिथ्या ज्ञान, पक्ष पात, सप्त तत्त्वों के परिज्ञान में संशय, विपरीत और अनध्यव साय रूप परिणाम, मत्सर भाव, अशुभ लेश्या, विकथादिक प्रवृत्ति रूप परिणाम, आर्त, रौद्र परिणाम 0 मिथ्या माया निदान शल्ययुक्त परिणाम, अनर्थदंड, मन वचन काय की कुटिलता, नबरस, गौरव आदि © अपनी पूजा, प्रतिष्ठा, कीति, मान बड़ाई के परिणाम, अनेक प्रकार के दुर्भाव, मंत्र तंत्र प्रयोग करना 0 आदि जिन कारणों से जीय, के परिणामों में राग द्वेष काम क्रोध मिथ्यात्वादि विकार हों, जिससे राग १ 8 द्वेष परिणाम हों; ऐसा अशुभ भाव जिन लिंग धारण करने वाले मुनियों को दूर से त्याग देना 8 चाहिए और परम ब्रह्म परमात्मा को जानना चाहिये । जो अपनी आत्मा को नहीं देखता है, नहीं

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