Book Title: Chahdhala 2
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 131
________________ हाला मदंगाकार रूप आकारों सहित अवलोक, अधोलोक तथा मध्यलोक का चिन्तवन करे । भावार्थ-अन्य मतावलम्बी मानते हैं कि बा ने इस कोर को बनाया है। विष्णु इसे धारण किए हुए हैं और महेश इसका संहार करते हैं । छहढालाकार इन सब का खण्डन करते हुए कहते हैं कि न तो किसी ने इस लोक को बनाया है, न कोई धारण किए हुए है और न कोई इसका & नाम ही कर सकता है। किन्तु यह लोक अनन्तानन्त श्राकाश के ठीक मध्य भाग में छह द्रव्यों से ठसाठस भरा हुआ पुरुषाकार संस्थित है और इसे चारों ओर घनोदधिवात, घनवात और तनुवात 8. ये तीन प्रकार के वातवलय से घेरे हुए हैं जिनके आधार पर यह लोक स्थिर है। इस लोक का आकार दोनों पैर फैलाए और कटि भाग पर दोनों हाथ रखे हुए पुरुष के समान है। इसके तीन भाग हैं-अधो भाग को पाताल लोक कहते हैं, जहाँ नारको प्रादि रहते हैं । मध्य भाग को तिपंच लोक या मध्य लोक कहते हैं जिसमें असंख्यात द्वीप समुद्र को अनादि निधन रचना है, इसो भाग में मनुष्य और तिर्यंच रहते हैं, इससे ऊपर के भाग को अर्ध्व लोक कहते हैं जहाँ स्वर्ग पटल हैं वहाँ देव, इन्द्र, अहमिन्द्र आदि निवास करते हैं । सब से ऊपर सिद्ध लोक है । जहाँ अनन्तसिद्ध विराजमान हैं। इस प्रकार के लोक में अनादि से यह जीव यथार्थ ज्ञान न होने के कारण जन्म मरण करता हुआ चक्कर लगाता है। इसमें एक प्रदेश भो बाकी नहीं बचा है जहाँ पर इस जोष ने अनन्त बार © जन्म और मरण न किया हो। पाप करने से यह जीव नरक, तियंचों में उत्पन्न हुआ। पुण्य करने से & मनुष्य और देवों में पैदा हुप्रा परन्तु मोक्ष जाने के उपायभूत शुद्ध उपयोग को इसने आज तक भी हु ल प्राप्त नहीं किया, जिसके कारण आज भी संसार में परिभ्रमण कर रहा है । परिणाम सोन प्रकार का इस - जीव के होता है, एक अशुभ परिणाम, दूसरा शुभ परिणाम और तीसरा शुद्ध परिणाम, जो संसारो -

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