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डाला
एक है। ऊर्ध्व अधो लोक से या तियंग लोक मिलाने से तोन भेद वाला है गति ग्रस्तिकाय द्रव्य
पदार्थ कर्म इनको अपेक्षा चार, पाँच, छह, सात आठ भेदवाला है; इस प्रकार
तथा पर्याय
भेदकर लोक के अस्तित्व काय का चिन्तवन करें । यह लोक अकृत्रिम है, अनादि
निधन है अपने
पर
स्वभाव से स्थित है, किसी के द्वारा बनाया हुआ नहीं है । जीव अजीव द्रव्यों से भरा हुआ है । सर्वकाल रहने वाला नित्य है और ताड़वृक्ष के आकार है, धर्म अधमं लोकाकाश और जितने में जोव पुद्गलों का गमनागमन है उतना ही लोक है। इसके आगे तर रहित जगन द्रव्यों के विश्राम केवल आकाश द्रव्य है, उसको अलोकाकाश कहते हैं । यह लोक अधोदेश में, मध्यदेश में, ऊपरले प्रदेश में क्रम से वेत्रासन, शालर, मृदंग इनके प्राकार हैं। मध्य के एक राज्ज विस्तार से चौदह गुगा लम्बा और ३४३ राजू घनाकार लोक है, उसमें यह जीव अपने कर्मों से उपार्जन किये सुख दुख को भोगते हैं और इस भव सागर में जन्म मरण को बारंबार अनुभव करते हैं । इस भवमें जो माता भव में वह पुत्री हो जाती है और पुत्री का जीव भव पलट कर माता हो जाती है। अधिक बलवीर्य का धारी प्रतापवान राजा भी कर्म के वश इस लोक में कीट हो जाता है तथा महान ऋद्धिधारी देव अनुपम सुख को भोगने वाला भी चलकर दुःख को भोगने वाला हो जाता है । इस प्रकार लोक को निस्सार जानकर अनन्त सुख का स्थान ऐसा मोक्ष स्थान का यत्न से ध्यान कर ! देखो नरक में सदा दुःख ही है, तियंचगति में हाथी, घोड़ा आदि बन्धन ताड़न आहारादिक रोकना ये दुःख है । मनुष्य गति में रोग शोक आदि अनेक दुःख हैं, और देव गति में दूसरे को आज्ञा में रहना तिरस्कार आदि सहना, वाहन बनना मानसिक दुःख है, ऐसा लोकानुप्र ेक्षा चिन्तवन करना तथा पटल इन्द्रक श्रीबद्ध प्रकीर्णकावि पर्याय सहित चितवन करें । त्रिकोण चतुष्कोण गोल आयतन
제주지