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ढाला
& पाना ऐसा कठिन है जैसा कि अनेक गुण पाने पर भी कृतज्ञता का गुण पाना । किसी प्रकार पंचेन्द्रिय
8 हो भी गया तो उसमें भी सैनी होना अत्यन्त कठिन है। सैनी होकर के भी मनुष्य भव का पाना 8 छह इस प्रकार कठिन है जिस प्रकार कि चौराहे पर रत्नराशि का पाना । ऐसा दुर्लभ मनुष्य भब " पाकर के भी जीव मिथ्यात्व के वशीभूत होकर महान् पापों का उपार्जन किया करता है । इस मनुष्य
भव में भी आर्यपना, उत्तम कुल, गोत्रादिक को प्राप्ति, धनादि सम्पत्ति, इन्द्रियों की परिपूर्णता,
शरीर में निरोग पना, दीर्घ आयुकता, शोलपना आदि का मिलना उत्तरोत्तर अत्यन्त दुर्लभ ४ है । यदि किसी प्रकार उपर्युक्त सब वस्तुएं प्राप्त भी हो गई तो सद्धर्म की प्राप्ति होना अत्यन्त
कठिन है । यदि वह न प्राप्त हुआ तो समस्त वस्तुओं का पाना व्यर्थ है, जैसे सर्व अंग अत्यंत सुन्दर 0 पाकर भी नेत्र हीनता के होने से मनुष्य जन्म व्यर्थ है। इसलिए हे भव्य जीवो ! ऐसे कठिन नर भव
को पाकर सम्यक्त्व, ज्ञान और चारित्र को धारण करो इस मनुष्य पर्याय से हो चारित्र संयम तप ध्यान आवि का होना संभव है और इसी से हो मोक्ष की प्राप्ति होती है । जो ऐसे उत्तम नरभव को पाकर
तुम इन्द्रिय विषयों में रमण करते हो वे भस्म के लिए दिव्यरत्न को जलाते हो, तुम जैसा अज्ञानी मूर्ख & संसार में और नहीं है । ऐसा जानकर हे आत्मन् ! कर्मोदय से उत्पन्न हुई समस्त पर्यायों को और
समस्त संयोगों को 'पर' जानकर सब सम्बन्धों को छोड़कर अपना आत्मा ही स्यद्रव्य है वहीं तुम्हें उपादेय है । ऐसा दृढ़ निश्चय करो । यही सज्ञान है और यही उत्तम बोधि है । ऐसा बार बार चितवन करना सो बोधि-दुर्लभ भावना है इस भावना के निरंतर भाने से रत्नत्रय की प्राप्ति होती है और आत्मा सदा जाग्रत रहता है।
अब धर्म भावना का वर्णन करते हैं