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चहुंगति दुख जीव भरे हैं, परिवर्तन पंच कर हैं । सब विधि संसार असार, यामैं सुख नाहिं लगारा ॥५॥
अर्थ-यह जीव चारों गतियों में परिभमण करता हुआ कैसे कैसे दुःख उठाता है, कष्ट सहन करता है और संसार चक्र में पांच परिवर्तन किया करता है। यह संसार सब प्रकार से असार है इसमें सुख का लेश मात्र भी नहीं है । अर्थात् अश्रद्धान रूप मिथ्यात्व अंधकार से सब जगह घिरा हुआ यह जोव जिनदेव कर उपदेश किये गये मोक्ष मार्ग को नहीं देखता संता भयानक अत्यंत गहन संसार रूप बन में ही भ्रमण करेगा, तहाँ, तथ्य, क्षेत्र, काल, भव और नाव रूप पंच परावर्तन संसार जानना, वह नरकादि गतियों में भ्रमण के लिये कारण हैं और वह बहुत प्रकार का है, प्रश्न-कौन संसार है ? किस भाव से संसार है ? किसके संसार है ? कहाँ संसार है ? कितने काल तक संसार है? कितने प्रकार का संसार है ? उत्तर-इस संसार में जन्म जरा मरण का भय, मन वचन काय का दुःख, इष्ट वियोग, अनिष्ट संयोग से उत्पन्न दुःख, श्वास खांसी आदि रोग से पीड़ित होने पर दुःख प्राप्त होता है तथा जलचर, स्थल चर, नभचर, तियंच योनि में, नरक में, मनुष्य गति में और देव गति में
हजारों तरह के दुःख पाता है, लाभ-अलाभ, सुख-दुःख, पूजा-तिरस्कार इन सब को अनेक बार भोगा, & ऐसे संसार को जानकर शीघ हो निस्सार चिन्तयन करना ।
भावार्थ-~-यह जीव चारों गति में परिभ्रमण करता हुआ कष्ट सहन करता है, यह प्रथम हाल में अच्छी तरह बतलाया गया है । संसार में घूमते हुए यह जीव पांच परिवर्तनों को किया करता है। ये पांच परिवर्तन ये हैं--१ द्रव्य परिवर्तन, २ क्षेत्र परिवर्तन, ३ काल परिवर्तन, ४ भव परिवर्तन और ५ भाव परिवर्तन । इनका स्वरूप संक्षेप से इस प्रकार जानना चाहिए :