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ल होने पर बहुमूल्य वस्तुओं को अल्प मूल्य में लेने का प्रयत्न करना, अपने आधोन जमीन की सीमा & बढ़ा लेना, किसी के भाग जाने या दंगा आदि में मारे जाने पर उसके मकान आदि पर काजा कर
लेना, सो विरुद्ध राज्य तिक्रम नाम का अतिचार है । क्योंकि शान्ति काल के जितने नियम कानून हैं उन सब का राज्य क्रान्ति वंगा युद्ध आदि होने पर लोप हो जाता है । असली सोने में तांबा मिला
देना, चांदी में रांग मिला देना, घी में तत्सम वाला तेल मिला देना, इस प्रकार अधिक मूल्य को ४ ॐ वस्तु में कम मूल्य को समान वस्तु को मिला देना, सदृश सन्मित्र नाम का अतिचार है । यथार्थ में & सदृश सन्मिश्र करते हुए चोरी की भावना पाई जाती है इसलिए अतिचार है। दुकान या घर श्रादि & पर लेने के लिए बांटों को अधिक वजन या नाप के रखना, सो होनाधिक विनिमान नाम का अति
चार है । नाप तोल में ईमानदारी रखनी चाहिए और जहां चोरी के द्रव्य की शंका हो उस वस्तु को हाथ ही नहीं लगाना चाहिए अतिचार को आड़ में अनाचार नहीं करना चाहिए ।
ब्रहमचर्याणुयत के अतिचार-पराये लड़के और लड़कियों के विवाह कराना पर विवाहकरण नाम का अतिचार है । ब्रह्मचर्याणुयती अपने और अपने सम्बन्धियों के पुत्रादिकों का तो विवाह कर & सकता है, परन्तु जो परवर्ग के पुरुष हैं जिनसे कोई सम्बन्ध या रिश्तेदारी नहीं है उनके पुत्रादिकों के & विवाह न करे, न करावे और न अनुमोदना करे । १-काम क्रीड़ा के अंगों को छोड़ कर अन्य अंगों
से काम क्रीड़ा करना सो अनगं कोड़ा नाम का अतिचार है । २-राग से हँसी मिश्रित भण्ड वचन बोलना, काय से कुचेष्टा करना सो विटत्व नाम का अतिचार है । ३-काम सेवन को अत्यन्त अभिलाषा रखना या काम कोड़ा में अधिक मग्न रहना सो काम तीब्राभिनिवेश नाम का अतिचार है। ४-व्यभिधारणी स्त्रियों के घर आना जाना, उनसे हँसी मजाक आदि करना, सो इत्वरिका गमन 8