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8 मकान, शय्या, सिंहासन, वस्त्र, बर्तन, भावि सभी अनित्य हैं । ऐसा चिन्तयन करें ।
भावार्थ-ऐसा चिन्तवन करना कि संसार में जितनी वस्तुएं उत्पन्न हुई हैं उनका नियम से ६ बिनाश होगा क्योंकि पर्याय रूप से कोई भी वस्तु स्थिर नहीं है सबका परिवर्तन होता रहता है। फिर इन उत्पाद व्यय-शील पर्यायों में क्यों राग द्वेष करू ? देखो इस जगत में जन्म तो मरण से सम्बर, जवानी वृद्धा अवस्था से लगी हुई है और लक्ष्मो विनाश सहित है, जो भी वस्तु नेत्रगोचर ]
है वह सब ही क्षणभंगुर हैं। ये स्वजन, परिजन, परिवारजन, स्त्री, पुत्र, मित्र, भ्रात, तात, मात ल 3 तन धन गृहादि स्पर्श आदि इन्द्रियों के विषय नौकर चाकर, हाथी, घोड़े, रथ, गाय, भैस आदि
समस्त वैभव इन्द्र धनुष, नवमेघ, शरद के महल और बिजली के समान चंचल है। देखते देखते ही
नष्ट हो जाने वाला है जैसे सूर्य का उदय कुछ काल तक ही रहता है वैसे ही प्राणी चारों गतियों में 8 & किसी काल की मर्यादा को लेकर उत्पन्न होता है जैसे पका हुआ फल वृक्ष से अलग होता है और
भूमि में गिर पड़ता है। वैसे ही संसारी प्राणी आयु के क्षय से अवश्य मर जाते हैं। इस लोक में प्राणी का जीवन जल के बुबबुबे के समान चंचल है । भोग रोग सहित है, जवानी जर। सहित है, सुन्दरता क्षण में बिगड़ जाती है । सम्पत्तियां विपत्ति में बदल जाती हैं नाशवान हैं । संसारी सुख मधु को बूद के स्वाद के समान हैं । परम्परा दुःख का कारण है इन्द्रियों के विषय और शरीर का बल मेघ पटल समान विनाशवाम है, राज पाट आदि इन्द्रजाल के समान सी जाने वाली है । स्त्री पुत्र पौत्रादि सब बिजली की चमक के समान चंचल देखते देखते क्षणमात्र में पलाय हो जाने 8 वाले हैं । जैसे मार्ग में नाना दिग्देश न्तरों का संयोग एक क्षणभर के लिए किसो वृक्ष के नीचे हो जाता है और फिर सब अपने अपने रास्ते जाते हैं । इसी प्रकार इस मनुष्य भवरूपी वृक्ष को