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२ प्रषोधोपवास शिक्षाव त-दिन में एक बार भोजन करने को प्रोषध कहते हैं। एक मास में 8 वो अष्टमी और दो चतुर्थशी होती हैं इन्हें पर्व माना गया है । इन चारों हो पर्वो के दिन सर्व पाप आरम्भ छोड़कर एकाशनपूर्वक उपवास करने को प्रोषधापवास कहते हैं । यह प्रोषधोपचास उत्तम १६ पहर का, समान १२ बहर का और गधन्य ८ पहर का कहा गया है । उत्तम प्रोषधोपवास में उपवास के पहिले और पिछले दिन एक एक एकासन करना पड़ता है। मध्यम प्रोषधोपवास में उपवास के पहिले दिन एकाशन करना आवश्यक है और जघन्य प्रोषधोपवास में पर्व के दिन ही उपवास करने का विधान है । उपवास के दिन स्नान तल मर्दन अलङ्कार धारण आदि का त्याग आवश्यक बताया ४ गया है। जिन पूजा के निमित्त प्राशुफ जल से स्नान कर सकता है ।
३ भोगोपभोग परिणाम शिक्षावत-जो भोजनादि पदार्थ एक बार सेवन करने में आते हैं 8 उन्हें भोग कहते हैं। जो वस्त्रादि पदार्थ बार बार उपयोग आते हैं उन्हें उपभोग में कहते हैं। भोग और उपभोग की वस्तुओं का आवश्यकतानुसार नियम करके शेष से ममता भाव को दूर करना, सो भोगोपभोग परिमाण निक्षाव्रत है। इन्द्रिय विषय भोग को बढ़ती हुई तृष्णा को निवारण करने के लिये इस शिक्षाप्रत का पालन करना अत्यन्त आवश्यक है। अभक्ष्य प्रादि पदार्थों का जीवन पर्यंत के लिये जो त्याग किया जाता है, उसे यम कहते हैं, और भक्ष्य वस्तुओं का कुछ समय के लिये जो
त्याग किया जाता है, उसे नियम कहते हैं। इन दोनों का धारण करना इस शिक्षावतधारी को प्रावल श्यक है। इसी प्रकार श्रावकों के जो १७ नियम अन्य शास्त्रकारों ने बतलाये हैं, वे भी इसी शिक्षात के अन्तर्गत जानना चाहिए ।
४ अतिथि संविभाग शिक्षाद्रत-मुनि आदि अतिथि के लिए आहार. औषधि आदि के से