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धानी पूर्वक रक्षा करनी चाहिए और उसे रत्नत्रय की आराधना में लगाकर नर भव सफल करना & चाहिए । इस संसार में जो कोई भी वस्तु आत्मा के काम आने वाली नहीं है। एक सच्चा सम्यग्दर्शन
और सम्यग्ज्ञान ही काम आयगा । अतः उसे पाने के लिये जैसे बने तैसे प्रयत्न करो । संसार से पार 8 लाल करने वाला सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान के सिवाय अन्य किसी से भी मोक्ष सुख की प्राप्ति नहीं होतो & है। जो जीव सवन, धन, धान्य, जाति, कुल, पुत्र, पौत्रादिक, वनिता, माता, पिता, वस्त्र, मन्त्रो, &
मालिक, शिष्य, प्रशिष्य आदि में ममत्व करता है, या ममत्व करने का कारण आतं रौद्र ध्यान करता & है, तब क्या वह, उत्तम सुख पा सकता है ? नहीं पाता है । जो मोक्ष मार्ग में गमन करना चाहता है ले 8 तो रत्नत्रय का पूर्ण तौर से साधन कर और किसी से भी ममत्व नहीं कर । सुनिये ग्रन्थकार कहते हैं
धन समाज गज बाज, राज तो काज न आवै । ज्ञान आपको रूप भये, फिर अचल रहावै ॥ तास ज्ञान को कारन, स्वपरविवेक बखान्यो ।
कोटि उपाय बनाय, भव्य ताको उर आन्यो ॥६॥ अर्थ-रात दिन अनेक कष्ट उठाकर उपजित किया हुआ यह धन, यह जन, समाज, हाथी,
यह राज-पाट आदि कोई भी लौकिक संपवा आत्मा में किसी भी काम में आने वाली नहीं है। सब यहां के यहां ही रह जाने वाली है। मरने पर कोई भी पदार्थ प्रात्मा के साथ चलने वाला नहीं है । एक सच्चा सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान ही साथ चलता है। जिन्हें इनको प्राप्ति हो जाय तो . वह अचल रहता है, कभी नहीं छूटता है, परभव में भी साथ चलता है, क्योंकि ज्ञान दर्शन आत्मा 8 का स्वरूप है । जो ऐसे आत्म ज्ञान से परिपूर्ण है और परम वैराग्य को धारण करता है, जिम का 8
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