________________
& है। फिर उस अवशिष्ट समय में भी नरकपति और पंचेन्द्रिय पशुगति के भीतर परिभ्रमण करने में 9 3 बहु भाग समय चला जाता है । अवशिष्ट जितना समय बचा उसके भीतर वह मनुष्य और
देव गति में जन्म लेता है। मनुष्य होकर भी बहु भाग पर्याय तो नोच कुल में उत्पन्न होने, रोगी, शोकी, होनांग, विकलांग, गूगे, बहरे, अन्ये, लंगड़े आदि होने के रूप में ही निकल जाती है, उत्तम कुल में जन्म लेना अत्यन्त कठिन बतलाया गया है । यदि भाग्योदय वश उत्तम कुल में जन्म भी हो गया तो निरोग शरीर का मिलना अत्यन्त कठिन है पदि वह भी मिल गया तो धर्म बुद्धि का होना बहुत दुर्लभ है, क्योंकि यह जीव अनादि काल के संस्कार वश प्रकृति स्वभाव से विषय-- भोगों की ओर रहता है । यदि किसी सुयोग से धर्म बुद्धि भी जागृत हुई तो वह संसार में फंसे हुए नाना मत मतान्तरों में उलझकर मिथ्यात्व का ही पोषरण करके संसार वास के बढ़ाने में ही लगा रहता है या लग जाता है, अतः सच्चे धर्म की प्राप्ति का होना अत्यन्त कठिन माना गया है । इसी समझ8
को ध्यान में रखकर मनुष्य पर्याय, उसमें भी उत्तम कुल जो श्रावक कुल, और उसमें भी जिनवाणी & का सुनना उत्तरोत्तर अत्यन्त दुर्लभ है । इन्हें पाकर भी जो कि आज कर्मवश से प्राप्त हुई है, यदि
हमने उनसे लाभ नहीं उठाया, सरचे मोक्ष मार्ग में गमन नहीं किया, तत्त्वों का अभ्यास कर क्षत्रिय 8 धर्म को धारण नहीं किया और यह नर भव पाकर स्यर्थ यों ही खो दिया फिर उसका पाना ही ध्यर्थ 8 हुआ। फिर पाना भी कठिन है, जैसे की समुद्र में गिरे हुए महामणि का पुनः मिलना अत्यन्त कठिन
होता है । जैसे मरुस्थल के कूप में रस्सी से बालटी गिर जाना, फिर मिलना कठिन है सौ हाथ कूप 8 में डोरी लोटा चला गया है और हाथ में अन्त की गांठ रह गई है जो चली गई तो मिलना कठिन & है । इस सब के कहने का सारांश यही है कि मनुष्य जीवन के एक एक समय क्षण को अत्यन्त साप