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& सम्यग्दर्शन को धारण करने के साथ हो उसे निर्दोष पालन करना चाहिए । जिन गेषों के कारण 8 सम्यग्दर्शन में निर्मलता नहीं आती है वे दोष २४ होते हैं उनका वर्णन लिखते हैं
वसु मद टारि निवारि त्रिशठता, षट अनायतन त्यागो । शंकाविक वसु दोष बिना, संवगादिक चित पागो । अष्ट अंग अरु दोष पचीसों, अब संक्षेपहु कहिये ।
बिन जाने से दोषगुनन को, कैसे तजिये गहिये ॥१॥
अर्थ-सम्यग्दर्शन की निर्मलता के लिये जाति मव, कुल मद, रूप मद, शान मद, धन मद, 8 बल मद, तप मद और प्रभुता मव, इन आठ मदों को नहीं करना चाहिए । देव मू कृता, गुरु मूढ़ता 8
और लोक मूढ़ता इन तीनों मूढ़ताओं को दूर करना चाहिए । कुगुरु, कुदेव और कुधर्म इन तीनों के सेवन इन छहों के अनायतन अधर्म के स्थान कहते हैं । सन्यग्दर्शन को विशुद्धि के लिए इनका 8 मी त्याग आवश्यक है । उक्त छह अनायतनों की प्रशंसा स्तुति वर्गरह नहीं करनी चाहिए । आगे कहे जाने वाले आठ अंगों के विपरीत आचरण से शंका आदि आठ दोष उत्पन्न होते हैं, उनका भी त्याग करना चाहिए । इस प्रकार पच्चीस दोषों का त्याग कर, प्रशम, संवेग अनुकंपा और प्रास्तिक्य 8 इन गुणों को हृदय में धारण करना चाहिए । अब आठ अंग, और २५ दोषों के स्वरूप संक्षेप से 8
कथन करते हैं। भावार्थ – अहंकार करने को मद कहते हैं, अज्ञानता पूर्वक कार्य को मूढ़ता । मूर्खता) पर & कहते हैं । अधर्म के स्थान को अनायतन कहते हैं। जिन भगवान के वचनों में, उनके बतलाये तत्त्वों ५
में या धर्म में शंका करना कि यह सच है या झूठ है, इसके पालन करने से मुक्ति मिलेगी या नहीं, 8 & इस प्रकार का संकेत करना शंका दोष है । धर्म को धारण करके उसके फल से संसारिक सुखों को