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& हानि उठाते हुए भी सस्ते भाव पर बेचकर गरीब और असमर्थ व्यक्तियों के लिए अन्न सुलभ कर ले
& देना चाहिए जिससे कि वे अखाद्य के खाने से बच सके । इसी प्रकार कितने ही गरीब नय युवक 8 छह & शादी न होने से चारित्रभ्रष्ट होने लगते हैं । उनको रक्षा के लिए आवश्यक है कि सर्वसाधारण लोग ल लाल अपनी बहन बेटियों को सुशिक्षित करके उन्हें विवाहें, समाज उनके विवाह आदि को चिन्ता करे ४
और उन कारणों को रोके जिनके कारण समाज के गरीब नवयुवकों को कन्याएँ नहीं मिलती हैं। इसी प्रकार आजीविका के अभाव में कितने ही परिवार विधर्मी बन जाते हैं, उनके स्थितिकरण के लिये यह आवश्यक है कि समाज के दानवीर श्रीमान् पुरुष अपने दान का उपयोग उन गरीब परिवारों को ल आजीविका के स्थिर करने में करें । धर्माचरण के क्रम और रहस्य को न जानने के कारण धनवान लोग प्रभावना अंग के नाम पर लाखों रुपया पूजा प्रतिष्ठा आदि में खर्च कर देते हैं, उन्हें ज्ञान होना चाहिए कि आचार्यों ने पहले स्थितिकरण अंग, उसके पश्चात् वात्सल्य अंग और उसके पश्चात् प्रभा- 8
वना अंग का क्रम रखा है, जिसका अर्थ यह होता है कि पहले अपनी लक्ष्मी का उपयोग धर्म से 3 & गिरते हुए व्यक्तियों के उत्थान में खर्च करो, इसके पश्चात् यदि धन बचता है तो अहिंसा की रक्षा & 8 और हिंसा के दूर करने में व्यय फरो, प्राणी मात्र पर वात्सल्य भाव की वृद्धि तब ही होगी, इसके भी & पश्चात् यदि धन बचता है तो प्रभावना के कार्यों में व्यय करो, यही सनातन नियम है । और यही धर्म
का क्रम और उनका यथार्थ रहस्य है, ऐसा जानकर हे मुमुक्षु जनों, : अपनी चंचला चपला लक्ष्मी पृच & को स्थिति करण अंग में लगाकर उसे स्थिर करने का सत्प्रयत्न करो । ७ वात्सल्यग्नंग-धर्म और ६१ & धर्मात्मा पुरुषों से गौ-वच्छ के समान प्रीति करने को वात्सल्य कहते हैं । जिस प्रकार गाय बछड़े 8 & के प्रेम से खिचकर अपने प्राणों का भी मोह त्याग कर बछड़े को रक्षा के लिये शेर के सामने चली ४