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.2 है । तथा लोक्य का स्वामित्व रूप महान् तीर्थकर पर भी इसी निर्मल सम्यग्दर्शन के प्रभाव से 8 मिलता है। ऐसा जानकर सम्यग्दर्शन की प्राप्ति का उणय करना चाहिए । आगे सम्यग्दर्शन के बिना ज्ञान और चारित्र' यथार्थता को प्राप्त नहीं होता है।
मोक्षमहल की परथम सीढ़ी, या विन ज्ञान चरिता । सम्यकता न लहै सो दर्शन, धारों भव्य पवित्र ॥ 'दौल' समझ सुन चेत सयाने, काल वृथा मत खोवै । यह नरभव फिर मिलन कठिा है, जो सम्यक नहिं होवे ।।१७॥
अर्थ-- यह सम्यग्दर्शन मोक्षरूपो महल में जाने के लिए पहली सीढ़ी है । इसके बिना ज्ञान 8 और चारित्र सम्यक् पना नहीं पाते, अर्थात् जब तक जीव के सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं हो जाता है, तब तक उसका ज्ञान मिथ्या और चारित्र मिथ्या चारित्र कहलाते हैं। क्योंकि ग्रंथकर्ता ने इसे मोक्ष मार्ग में कर्ण धार के समान कहा है। हे भव्य जीवों ! हे समझदार सयानो ! ऐसे पवित्र और महान 8 सम्यग्दर्शन को अवश्य धारण करो और सुनो, समझो और खेतो, सावधान हो जायो और अपने समय को व्यर्थ बर्बाद मत करो, देखो यषि इस जन्म में भी सम्यग्दर्शन को प्राप्त नहीं कर सका तो फिर इस मनुष्य भव का मिलना अत्यन्त कठिन हो जायगा । यह जीव अनादि काल से संसार में परिभ्रमण करने वाला यह मिथ्यात्व कर्म के उदय से द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव रूप पंच परावर्तन मय संसार में परिचमण करता हुआ आया है परन्तु इस जीव को अनन्त काल में भी अब तक सम्यग्दर्शन की प्राप्ति नहीं हुई । क्योंकि सम्यग्दर्शन के प्राप्त होने से फिर यह जीव पंच परावर्तन रूप संसार में 8 परिममण नहीं करता । परन्तु यह जीव संसार में परिभ्रमण कर रहा है, इससे सिद्ध होता है कि इस