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छह ४
हाला
& निजानन्द रस के पानी उत्कृष्ट अन्तर आत्मा ७ गुण स्थान से लेकर १२ गुण स्थान तक हैं। 8
दो प्रकार के संग बिन, शुद्ध उपयोगी मुनि उत्तम निज ध्यानी । इस वचन से यह सारांश निकलता है ले कि सातवें गुण स्थान से लेकर बारहवें पुरण स्थान तक के साधु तो उत्तम अन्तरात्मा की श्रेणी में 8 आते हैं और पांचवें गुण स्थानवी श्रावक तथा छठे प्रमत्त विरत गुणस्थान वाले मध्यम अन्तर आत्मा हैं । अब आगे अजीव तत्व लिखते हैं
चेतनता बिन सो अजीव हैं, पंच भेद ताके हैं । पुद्गल पंच वरन, रसपन गंध दुफरस वसू जाके हैं । जिय पुद्गल को चलन सहाई, धर्मद्रव्य अनरूपी । तिष्ठत होय अधर्म सहाई, जिन, विन पूर्ति निरुती ॥७॥ सकल द्रव्य को वास जासमें, सो आकाश पिछानों । नियत वरतना निशिदिन सो व्यवहारकाल परिमानो ॥
अर्थ-जिस द्रष्य में चेतना नहीं पाई जाती हैं, उसे अजीब द्रव्य कहते हैं । उसके पांच भेद 8 हैं-पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल । जिनमें पांच प्रकार का रूप, पांच प्रकार का रस, दो। & प्रकार की गंध और आठ प्रकार का स्पर्श, ये बीस गुण पाये जाते हैं, उसे पुद्गल द्रव्य कहते हैं ।
जो जीव और पुद्गलों के चलने में सहायक है, उसे धर्म द्रव्य कहते हैं । यह अमूर्तिक द्रव्य माना 8 & गया है । जो जीव और पुगलों के ठहरने में सहायक है, उसे अधर्म द्रव्य कहते हैं । यह भी अमू-8 & तिक कहा है । जिसमें समस्त द्रव्यों का निवास है, उसे आकाश द्रव्य जानना चाहिए । जो स्वयं ल & परिवतित होता है और अन्य परिवर्तन करते हुए द्रव्यों के सहायक होता है, उसे काल द्रव्य कहते हैं । ४