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8 काल द्रध्य दो प्रकार का है एक निश्चय काल और दूसरा व्यवहार काल । वर्तना जिसका लक्षण है 8 & उसे निश्चय काल कहते हैं और घड़ी, घंटा, दिन, रात, पक्ष, मास, वर्ष, संख्य, असंख्य प्रादि को
व्यवहार काल कहते हैं । ये पांचों ही द्रध्य अजीव हैं । इसलिए इन का अजीव तत्व के अन्तर्गत हाला वर्णन किया गया है । आगे प्रास्त्रवादि तत्त्वों का वर्णन लिखते हैं
यों अजीव अब आस्व सनिये मन वच काय त्रियोगा । मिथ्या अविरत अरु कषाय परमाद सहित उपयोगा ॥८॥ ये ही आतष के दुख कारण, तातें इनको तजिये । जीव प्रदेश बंधे विधि सों, बंधन कबह न सजिये ॥ शम दमसों जो कर्म न आवै, सो संवर आदरिये । तय बल तै विधिझरन निर्जरा, ताहि सदा आचरिय ।।६।। सकल करमते रहित अवस्था, सो शिव थिर सुखकारी । इहिविधि जो सरधा तत्वन को, सो समकित्त व्योहारी । देव जिनेन्द्र गुरू परिग्रह बिन, धर्म दया जुत सारी । यह मान समकित को कारन, अष्ट अंग जत धारो॥१०॥
____ अर्थ--मन, बचन और काय इन तीनों योगों के हलन चलन रूप क्रिया के द्वारा जो कर्मों का & आना होता है, इसे आस्रव तत्व कहते हैं, इस आम्रव के ५ भेद हैं-मिथ्या दर्शन, अविरति प्रमाद & कषाय और योग । ये पांचों ही कर्मों के कारण होने से आत्मा के दुःख के कारण हैं । इसलिए इन्हें
छोड़ देना चाहिये । जीव के प्रदेशों को कर्म-परमाणुओं से बंधन को बंध कहते है, सो बंध भी नहीं