________________
ढाला
& है, ये तीनों हो प्रकार के अन्तर आत्मा मोक्ष मार्ग पर चलने वाले हैं । जो शुद्ध आत्म स्वरूप को
प्राप्त कर चुके हैं, उन्हें परमात्मा कहते हैं । वे परमात्मा दो प्रकार के हैं एक सकल परमात्मा और 8 दूसरा निकल परमात्मा । जिन्होंने चार घातियां को को नाश कर दिया है और जो केवल ज्ञान को प्राप्त कर लोक और अलोक के समस्त पदार्थों के ज्ञाता दृष्टा हैं, ऐसे समवशरणादि बहिरंग लक्ष्मी
ओर अन्तरंग अनन्त चतुष्टय रूप लक्ष्मी के धारक श्री अरहत भगवान् सकल परमात्मा हैं। जो ज्ञानावरणादि द्रव्य कार्य. जागोजाति मान कई नौर शरीरादि नो कर्म तव्य इन तीनों प्रकार के कर्मरूप मल से रहित है । ज्ञान स्वरूप शरीर को धारण करते हैं अथात् अशरीर हैं। लोकातिशायो महान् सिद्ध पत्र को प्राप्त कर चुके हैं ऐसे सिद्ध परमेष्ठी निकल परमात्मा हैं, जो अनन्तानन्त काल तक अनन्त सुख को भोगे है, इस प्रकार के जीवों के तीनों भेदों का वर्णन कर भव्य जीवों को तथा अपनो प्रात्मा को संबोधन करते हुए कहते हैं कि इनमें से वहिरात्मपने को हेय जान करके छोड़ दो। और 8 अन्तर आत्मा रूप होकर के निरंतर परमात्मा का ध्यान करो, जिससे निरंतर अविनाशी आनन्द की प्राप्ति हो। भावार्थ-मध्यम प्रात्मा के स्वरूप में देशवती अनगारी या देशव्रती आगारो इस प्रकार के दो पाठ मुद्रित व अमद्रित प्रतियों में दष्टिगोचर होते हैं । तथा जिन वचनों में अनुरक्त मंद कषायो और महापराक्रमी है, श्रावक के गुणों से संयुक्त है, ऐसे श्रावक और प्रमत्त विरत साधु रे मध्यम
अन्तर आत्मा है । जो पंच महावतों से युक्त है, नित्य धर्म ध्यान में तप में और शुक्ल ध्यान में & विद्यमान है, और सकल प्रसादों के जीतने वाले, अष्टादश सहस्र शील के प्राचरण करने वाले, साढ़े 8.
संतीस हजार प्रमाद के दोष से रहित, चौरासी लक्ष उत्तर गुण या अठाईस मूल गुरण के धारक निरंतर आत्म तत्त्व में लोन सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र की एकता करने वाले सदा 8