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उनको सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति कहते हैं । जब ये निकल जाते हैं तब उनको अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति कहते हैं । और तुच्छ फल सप्रतिष्ठित प्रत्येक के दृष्टान्त हैं । साधारण वनस्पति को एकेन्द्रिय निगोद कहते हैं । वह बहुधा आलू, घुइयां, मूली, गाजर, शकरकन्द रतालू भूमि में फलने बाली तरकारियां साधारण या सप्रतिष्ठित प्रत्येक होती है । अपनी मर्यादा को प्राप्त परको ककड़ी, नारंगी, पक्का आम, अनार, सेब, अमरूद, केला, नींबू, खरबूजा, कोहला, कलिवरा, पेठा, कुमरा, बिजोरा, इमली, आंवला, केत, वोला, बेल आदि प्रत्येक वनस्पतिकायिक जीवों को बड़ा हो कष्ट होता है । कोई वृक्षों को काटता है । कोई छेदन - मेदन करता है । पत्तों को तोड़ता है। फलों को काटता | साग को तीक्ष्ण शस्त्र काटकर अग्नि में भोंकता है, मसलता है, पकाता है अथवा पशुओं के द्वारा या मनुष्यों के द्वारा इन वनस्पतिकायिक जीवों को बड़ी हो निर्दयता से कष्ट दिया जाता है । वे बिचारे पराधीन होकर स्पर्शन इन्द्रिय द्वारा घोर वेदना सहते हैं। वे जीव बड़ा ही कष्ट पाकर मरते हैं। इस तरह ऐकेन्द्रिय प्राणियों के कष्टों को विचारते हुए रोमाञ्च खड़े हो जाते हैं । जैसे कोई किसी मानव की आंख बन्द कर दे। जबान पर कपड़ा लगा दे व हाथ-पैर बांध वे और मुद्गरों से मारे, छोले, पकावें । कुल्हाड़ी से टुकड़े करें तो भी यह मानव सहाकष्ट वेदना सहन करेगा, परन्तु कह नहीं सकता, feet नहीं सकता, भाग नहीं सकता। इसी तरह हो ये एकेन्द्रिय प्राणी अपने मति श्रुत ज्ञान के अनुसार घोर दुःख सहन करते हैं । वे सब उनके हो पूर्व बांधे हुए असातावेदनीय पाप कर्म के फल हैं । दो इन्द्रिय प्राणियों से चौइन्द्रो प्राणी तक के जीवों को विकलत्रय कहते हैं । ये कोड़े मकोड़े पतंग चींटी आदि हवा पानी प्राग से भी घोर कष्ट पाकर मरते हैं । बड़े सबल जन्तु छोटों को पकड़कर खा जाते हैं अथवा बहुत से भूख प्यास पानी की वर्षा से, आग जलने से बनी में आग
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