Book Title: Bhuvanbhanu Kevali Charitram
Author(s): Indrahans Gani
Publisher: Vitthalji Hiralal Hansraj

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Page 14
________________ भुवन // 12 // JEE MENIMELIEFILMS जब MEHRI 9 भगिन्यापि / ज्येष्टया कर्मभूपतेः // अनंतांशेन मोहस्य / वयं संभाविताः सदा // 32 // एकोऽहं शत्र- | | वोऽनेके / तदप्यत्र न कारणं // सुरो हि दलयत्येक-स्तमांसि प्रचुराण्यपि // 33 // तदर्शनं च कालेन | / / भवितेति न खेदकृत // यस्माद् बुभुक्षितस्याल् / पाकं नायात्युदंबरः / / 34 // धीरा भवत तयूयं / ज देव यस्माद्भविष्यति // क्रमात् सुस्थमिदं सर्वं / कालेनाशुभहानितः // 35 // अत्रांतरे सर्वमेतदत्यंतावहितमानसः श्रुत्वा चंद्रमौलिभूपालः सहर्षश्चेतस्यचिंतयत, अहो सदबोध न मंत्री साधुर्यथार्थनामैवासो, क एवं वक्तुमपि जानाति ? अत एव सर्वथाप्यनुग्रहिता वयमनेन साश्चर्य मुनींद्राख्यानकथनेनेत्यादिनिमोलितलोचनः क्षणं परमानंदमनुभूय प्राह, भगवन् ! ततस्तस्य चारित्रधर्मदत्तसहायस्य जीवस्य पुरतः किं जातमित्युत्सुकास्तव्यतिकरश्रवणे वयमित्याधायास्मासु प्रसादं तदुदंतो में | निवेद्यतां? ज्ञानी प्राह-समाकर्णयतु महाराजः, ततः कर्मपरिणामभूपेनासंव्यवहारनगरात्समानीय | मुक्तोऽसौ व्यवहारनिगोदेषु, स्थितश्चात्मना तत्समीप एव कृतप्रच्छन्नरूपः. ततो ज्ञातोऽयं व्यतिकरो मोहादिभिश्चिंतितं च-अहोऽयमस्मदीयनायको नारद इव केलिप्रियो लोलेव घंटायाः, मणिरिव डमरुकस्य, नलक इव कोलिकस्य, मृदंग इव मातंगस्य सदैवोभयपक्षगामी पुनः पुनराख्यायमानमपि न of fair D E DID ED ED DEEP Ta // 12 //

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