Book Title: Bhuvanbhanu Kevali Charitram
Author(s): Indrahans Gani
Publisher: Vitthalji Hiralal Hansraj
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________________ भुवन चरित्रं ID SEE | नेत्ररोगी, कर्णकंठतालुजिह्वादशनोष्टकपोलास्यरोगी, हृदयशूली, कुक्षिशूली, पृष्टशूली, आमदोषी, प्रमेही, | अरोचकी, क्षयादिरोगी, क्षीणदेहः सदैवातुच्छोच्छलत्तोत्रवेदनासंघातेन क्रंदन् परिदेवमानः शोचयन् | विलपन् यथादर्शमेव परिचितापरिचितविज्ञाविज्ञसमस्तजनेभ्यो निवेदयन् दीनो भक्षयन् मूलजालानि, पिबस्तीक्ष्णकटुकक्काथान्, कुर्वन्नत्युग्रचूर्णशतानि, अनार्यजनोपदेशात्स्वनतिकल्पनातो वा स्वशरीरपटुकर| णेच्छया भक्षयन्नभक्ष्याणि, पिबन्नपेयानि, कुर्वन्नकार्याणि, प्रवर्तयन् मंत्रतंत्रबलिविधानादिप्रयोगेषु / व महासावद्यानि, समुचितमहापापभरोऽनंतवारहारितमनुजभवो व्यावर्तित एकेंद्रियादिषु प्रतिवेलमनंतa पुद्गलपरावर्तान् यावदिति. अन्यदा पुनः प्राप्ते कथमपि मनुजत्वे मोहनृपतिनिरूपितपापमहादंडाधिपव त्यादेशतो जातः क्वचिदाखेटकः, क्वचिद्वायुरिकः, क्वापि सोकरिकः, क्वचिल्लुब्धकः, क्वचित् केवलं मांसान शनव्यसनी, क्वचिन्निरंतरं महामद्यपानरतः, क्वापि वर्तनीपातनेन, क्वचित् क्षात्रखननेन, क्वापि बंदिव ग्रहेण, क्वापि कर्णादित्रोटनेन, क्वापि कूटकारद्यूतकारधूर्तविद्यदिप्रयोगैः सकलजनवंचनेन, क्वचित्तला| रक्षगुप्तिपालामात्यादिखरकर्माचरणेन, क्वचित्संसक्ततिलेापीलनेन, क्वचिन्मांसविक्रयेण, क्वापि मदिरा| वाणिज्येन, क्वचिच्छस्त्रलाक्षालोहहलमुषलोदूखलशिलापट्टघरट्टादिबहुसावद्यवस्तुविक्रयेण समुपार्जिता- "

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