Book Title: Bhuvanbhanu Kevali Charitram
Author(s): Indrahans Gani
Publisher: Vitthalji Hiralal Hansraj
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________________ भुवन IM // 46 // DowOME जिजिजिजEW // तेषां दूरे परित्राणं / पश्यंत्यपि हि ते न तां // 31 // तद्यद्यस्ति तवार्थित्वं / तया सुंदर किंचन // व दर्शयामि ततोऽहं तां / सौस्थ्यं ते जायते यतः // 32 // प्रगुणोऽहं तिष्टाम्येष / प्रसादं प्रविधाय मे॥ सत्वरं दर्शयतामत्र | सा समुत्सुकचेतसः // 33 // ततो गुरुणा तस्य विशेषवती योग्यतामुपलभ्य सदा| गमश्रुतिमुखेन तावत्सविस्तरमुपवर्ण्य पुनरपि मोहमहाचरटमिथ्यादर्शनकुदृष्टिकुधर्मबुद्धयादिवैगुण्यं, ता. | वच्च निवेदिताः शुद्धधर्मगुणा यावदुन्मीलिता सा शुद्धधर्मकरणबुद्धिः. ततस्तेन संविग्नमनसा प्रोक्तं / भगवन् युष्मत्कृतारसदागमप्रसादात्संपन्ना तावन्मम धर्मबुद्धिः. तत्प्राप्तौ च चिंतयाम्यहं करोमि युष्म | दभिहितमेव धर्म, परिहरामि कुदृष्टिकधर्मबद्धयादिसंसर्ग. तत्कथयत प्रसादं कृत्वा स्वधर्मविधानोपायबुद्धिं. ततो गुरुणाभिहितं भद्र भवतश्चेदस्यां धर्मबुद्धो स्थिरानुरागिता तोफैवास्मदादीनुत्साहयति धर्मविधा| नोपायविधिकथनादिषु. तदिह शुद्धधर्म चिकीर्षणा तावत्प्रथममेवान्यपरिहारेण सम्यग्मनोवाकायैः प्रति-| पत्तव्यः स्वामिभावेन सम्यग्दर्शनो नामामात्यः. रक्षणीयं सर्वप्रकारैर्यत्नतस्तत्कालुष्यं, ततः सम्यगारा|धित एष तथा प्रसीदति यथा भवति सर्वाप्युत्तरोत्तरगुणप्राप्तिः. ततश्चिंतितं राजतनयेनाहो महाप्रभावः | | कोऽप्येषः, सम्यग्दर्शननामापि सुंदरमस्य, अथ कथमेष मया दृष्टव्यः प्रत्यभिज्ञानीयो वेत्यादि चिंतयति // 46 //

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