Book Title: Bhuvanbhanu Kevali Charitram
Author(s): Indrahans Gani
Publisher: Vitthalji Hiralal Hansraj
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________________ भुवन परि // 44 // OILEDIS WE नि लिन MSO RELE | रुतस्तेषां / तत्किमाख्यायते तव // रागादिदोषनिर्मुक्त-मानसेषु गुणात्मसु // 6 // अदेवबुद्धिदेवेषु / द्वेष भावं तथैव च // नित्यं जनयतो दुष्टो / निःस्पृहेषु दयालुषु // 7 // गुरुष्वगुरुबुद्धिं च / स्थापयत्यगुणिष्व |पि // दयादानक्षमाशील-ध्यानज्ञानादिनिर्मितां // 8 // त्रिभिर्विशेषक :: सद्धमें सर्वदा द्वेषं / भूतघातात्मके | पुनः // अधमें पक्षपातं च / भृशं कारयतस्तथा // 9 // विपर्यस्तास्ततो जीवाः / पापं संचिंत्य भूरिशः // तत्तद्दुःख सहते य-गदितुं नैव पार्यते // 10 // मोहादिभिस्ततः सर्वे-वैरिभिर्मिलितै शं // त्वमप्यनंतकं काल-मेतावंतं कदर्थितः // 11 // विशेषतोऽत्र ते वैरी / सकुटुंबोऽपि दुष्टधोः // स मिथ्यादर्शनो मंत्री / दुरंतः खलु दुःखदः // 12 // तद्भार्यापुत्रिकाभ्यां तु / दग्धो दुःखैर्यथा पुनः॥ त्वं तथा कथयेत्कोऽत्र / सहस्रवदनोऽपि सन् // 13 // तद्भाषितमिति श्रुत्वा / भीतश्चेति नृपांगजः॥ सगद्गदगिरा शांतः / प्रणम्य गुरुमब्रवीत // 1 // एतदेतावती वेलां / प्रभो तावतपरा क्वचित ॥न विज्ञातं पुरा किंचि-दज्ञा-- | नाहतचेतसा // 15 // तच्छरणविमुक्तस्य / वैरिभिस्तैर्निरर्गलं // क्षेत्रिकृतस्य दुःखानां / किं त्राणं मे भवि| ष्यति // 16 // गुरुणा प्रेरिता प्राह / श्रुतिस्तं पुनरप्यतः // निवेदितं मया भद्र / तुभ्यमेतदनंतशः | // 17 // परं शून्यतया क्वापि / क्वचिदप्यश्रद्धानतः // क्वचिद् द्वेषात् क्वचिन्मोहात् / क्वापि शाट्यात् | [ TREETE IS DELD DEERaago ME CODE / / 44 //

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