Book Title: Bhuvanbhanu Kevali Charitram
Author(s): Indrahans Gani
Publisher: Vitthalji Hiralal Hansraj

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Page 45
________________ भुवन चरित्रं // 43 // || स्ति मनुष्यक्षेत्रे मलयपुरं नाम नगरं, तत्र च इंद्रो नाम राजा, तस्य च विजया नाम भार्या, तयोः | | पुत्रत्वेनोत्पादितोऽसौ प्रस्तुतजंतुः कदाचित्कर्मपरिणामेन, स्थापितं च तत्रास्य विश्वसेननाम. गतो वृद्धि, अधीताः कलाः, प्राप्तो युवतीजनमनोमोहनं प्रचुरं यौवनं, ततश्चान्यदा स कुमारवृदपरिवृतः क्रीडायै / | गतोऽशोकसुंदरनामोद्यानं. तत्र च दर्शितो पुनरपि कर्मभृपेन तस्य तो सद्गुरुसदागमो, तदर्शनसमुल्ल | सितविशिष्टतरवीर्यः सविशेष कृततीक्ष्णत्वेन कर्मभूपालावाप्तपूर्वाभिहितखड्गेन पूर्वोक्तच्छेदादधिकतरं / | छित्वा मोहादिशत्रूनस्खलितो गतः सद्गुरुसदागमसमीपे सपरिकरः कुमारः, सविनयं च प्रणम्योपविष्टः व न समुचितप्रदेशे, कारितश्च सदागमं भणित्वा गुरुणा तस्य श्रुतिसंगमः, प्रोक्तं च श्रवणे विलग्य तया, | व तद्यथा-भद्र भोलितबुद्धित्स्वं / भ्रामितो भवसागरे // दुष्टमोहमहीपस्य / मिथ्यादर्शनमंत्रिणा // 1 // यतः कुदृष्टिगेहिन्या / सार्धं दुहितरं निजां // धर्मबुद्धितया ख्याप्य / प्रेषयत्येव दुष्टधीः // 2 // ततोऽर्थतो | 1 महापाप-बुद्धिरेषा जगत्त्रये // भ्रमंती ववशीकृत्य / वराकान् प्राणिनोऽखिलान् // 3 // धर्मच्छलेन / 8 पापानि / कारयित्वा महात्यपि // पातयत्यतिरौद्रेषु / नरकेषु ततो भवे // 4 // अनंते भ्रामयत्येषा / / | मिथ्यादर्शनमंत्रिणः // पितुः कुदृष्टिमातुश्च / सेवां कारयते भृशं // 5 // त्रिभिर्विशेषकं // तौ च यत्कु- Tal's BEIREEMEETIREMEMEDDREE

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