Book Title: Bhuvanbhanu Kevali Charitram
Author(s): Indrahans Gani
Publisher: Vitthalji Hiralal Hansraj
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________________ भुवन DEHRI DID IN MMS LEEEET DICID OLD | मेव, ततस्तत्र सर्व वयमेव भलिष्यामो यद्यस्मद्योग्य विशेषतः किंचिद्भविष्यति, परमनंतं देवकटकं, ततो नति | रसगृद्धयाऽकार्यप्रवृत्तिरुजादिभिर्महिलाभिरपि सहायो भविष्यति, एवंविधं मिथ्यादर्शनमहत्तमस्योच्चै - | षितं श्रुत्वा बहिश्चित्तव्यामोहास्थानमंडपोपविष्टया हसितमट्टहासेनैकया योषिता पंडकेन च. ततो विस्मितो मोहनृपो विपर्यासनिवहनामविष्टरतः समुत्थायोवाच. वत्से किं तया पंडकेन चामुना हसितमत्र ततः प्रणम्य सा प्राह समस्तजगददःखोत्पत्तये स्वयमेव नियुक्तामिष्टजनवियोजिकाभिधानां महापदं| मां जानातु देवः. तथैव मरणाभिधानोऽयं भुवनत्रयाप्रतिहतसामर्थ्यः शकचक्रिणामप्यलंध्यशासनो महान | धाटीनायकः सर्वत्र पातिताकांडविड्वरो युष्मत्प्रसादात्सबालवृद्धसमस्तजगजंतूनां च सदैव विदित व | एवायं पंडकः. किमत्र कथयाम्यहं ? इतश्च नीतोऽसौ युष्मबंधुना कर्मपरिणामभूपेन संसारिजीवः कनकपुरवासिनोऽमरश्रेष्टिनो गृहे, क्षिप्तश्च नंदागर्भ, जाताश्च षण्मासाः, ततश्च समुपलक्षितदेवमनोऽभिप्राया गताहं मरणसहायिनी, तत्र चोपहतस्तावत्तत्पिता. जाते च तस्मिंस्तजननी शेषमनुष्याश्च क्षणा- | दनेम मरणमहासुभटेन. ततः सोऽप्युपहतो वराकस्तावद्यावन्निष्टापितं नाम तत्कुलस्यापि. ततः क्षिप्तश्वासावेकेंद्रियादिषु, तत्र च भ्रमन्नसो पुनः स्थास्यत्यनंतपुद्गलपरावर्तानिति. एवमावाभ्यामेवेदं महत्कार्य | " // 19 //

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