Book Title: Bhuvanbhanu Kevali Charitram
Author(s): Indrahans Gani
Publisher: Vitthalji Hiralal Hansraj
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________________ भुवन LOWE // 40 // क्षतिमपि गणयंति नात्मनो गुणिनः॥ जनयंति हि प्रकाशं। दीपदेशाः स्वांगदाहेऽपि // 2 // यद्यपि चारित्रधर्माद्या ममापि क्षयायैव यतंते, इति किं तेषां परमवैरिणामुपकृतेनेत्येतदपि न चिंतनीयं. यतःउपकारिणि वीतमत्सरे वा / सदयत्वं यदि तत्र कोऽतिरेकः // अहिते सहसापराधलुब्धे / सघृणं यस्य मनः सतां स धुर्यः // 1 // अपास्य लक्ष्मीहरणोच्छवैरता-मचिंतयित्वा च तदद्रिमर्दनं // ददो निवासं | हरये महार्णवो। विमत्सरा धीरधियां हि वृत्तयः // 2 // यदिवा मदीयं शुभपक्षं सदैव ते पोषयंति, | सविस्तरं चास्मत्स्वरूपं सम्यगेव जानंति. त एव च मां लोके सम्यक्प्रख्यापयंति, विस्तारयंति च भुवन- - |त्रयेऽपि मत्प्रसिद्धिं, अन्यथा नामापि मम कोऽज्ञास्यत् ? प्रसिध्ध्यर्थिनश्च पुरुषाः किमिह न तद्यन्न सहते. यतः-तमसाऽनिशं शशांको / गमनं न त्यजति खेद्यमानोऽपि // एतावती प्रसिद्धि-र्यस्मादन्यत्र गम| नकृतां // 1 // इत्यादि विचिंत्य विजयवर्धननगरे सुलसश्रेष्टिनः पुत्रतयोत्पादितः कदाचिदसौ संसारिजीवः | a कर्ममहाराजेन. स्थापितं च तस्य नंदन इति नाम, प्राप्तश्च यौवनं. ततः कर्मपरिणामेन च निकटीभूय / | प्रच्छन्नमेव समये समर्पितोऽस्य यथाप्रवृत्तिकरणनामा खड्गः. निवेदितं च कर्णे खंडयामुना खड्गेनात्म| वैरिणो मोहराजस्य किंचिदूनमेकसप्ततितमं भागं विहाय शेषान् सातिरेकैकोनसप्ततिदेहभागांस्तथा EDEO DEIDO DH PIDOES D E FEDE REDMINE // 40 //

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