Book Title: Bhuvanbhanu Kevali Charitram
Author(s): Indrahans Gani
Publisher: Vitthalji Hiralal Hansraj

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Page 13
________________ भुवन // 11 // 回回回回回回回回回回回回回回回回回 | // 19 // तत्पक्षं च शुभं सर्वं / पोषयामो वयं सदा // पर्यतेऽस्मत्कृतं तेन / सर्वनाशं स आत्मनः // 20 // | ज्ञात्वाप्यस्मदनुवृत्तिं / कांचिदेष करिष्यति // न चैकांतेन दुष्टोऽयं / दुष्टमोहादिवत्सदा // 21 // युग्मं // इत्यादिसद्बोधोक्तः / पुरस्कृत्य तमेव सः // चारित्रधर्मस्तस्यांते / गतः स्वल्पपरिच्छदः // 22 // कर्मसं| चयभूपालः / सद्बोधेनोदितस्ततः // वेलामेतावती याव-युष्माभिस्तावदीदृशी // 23 // न कृतवैकप क्षेऽनु-वृत्तियं समास्ततः // इदानी मा कुरुध्वं न / उपेक्षां पाल्यतां स्थितिः // 24 // युग्मं // चिरं व स्थित्वा ततस्तूष्णीं / विमृश्यैव महीपतिः // तत एव पुरादेकं / समानीय सहायकं / / 25 // सद्बोध- - a स्योपदश्व-मुवाच श्रवणे शनैः // एको युष्माकमप्येष / सहायः प्रकटः क्रमात् // 26 // युग्मं // भa| विष्यंत्यधुना त्वस्य / तेऽद्यापि प्रतिपंथिनः // अनुवृत्त्या ममाप्येते / कुटुंबविघटान्यथा // 27 // इत्याक-- र्ण्य ततो धर्मः / सदबोधेन समं गतः // स्वस्थाने पृष्टवांश्चैवं / किं तेन कृतमीदृशं // 28 // प्रभूतान् 1 मोहराजाय / सहायाम् दत्तवान् यतः // एकं तु नः समापि / कदाचिद्दर्शयिष्यति // 29 // ततो विहस्य सदबोधः / प्राह किं न श्रुतं जने // प्रभो नाशे गवां प्राप्ति-गोमयस्यापि शस्यते // 30 // मोहो | भ्रातानुरक्तोऽस्य / वैरिणो हि वयं सदा // अहर्निशमप्येतस्य / क्षयायैव यतामहे // 31 // लोकस्थित्या // 11 //

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