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हाड़ौती की जैन अभिलेख परम्परा
झालावाड़ मुख्यालय से ३५ किलोमीटर दूर खानपुर कस्बे में चांदखेड़ी में जैन दिगम्बर आदिनाथ जी का विख्यात मंदिर है। यहाँ मंदिर निर्माण का एक जैन अभिलेख महत्व का है, जो इस प्रकार है :
संवत् १७४६ वर्षे मप्रमांगल्य प्रदमासोत्तम माघ मासे शुक्ल पक्षे .... तिथो सोमवासरे उत्तरा भाद्रपद नक्षत्रे.....खीचीवाड़ देश ..... नगर चांदखेड़ी बादशाह श्री अवरंगशहि राज्य प्रवर्तमाने तत्सामन्त चौहाण वंश हाड़ा महाराजाधिराज महाराज श्री माधोसिंहजी तत्पुत्र महाराज कुमार श्री रामसिंह जी तथा महाराजाधिराज श्री किशोरसिंह जी राज्य प्रवर्तमाने बघेरवाल साह श्री भोपातिःस्तद्भार्या भक्तादे तत्पुत्रौ द्वौ प्रथम पुत्र साह नानू तद्भार्या नौलादे द्वितीय पुत्र श्री जिनसाह..... भक्ति साधुजन दान वितरण सफलीकृत निज मनुष्य जन्मा साह श्री नेतसी तद्भार्या नारंगदे तत्पुत्र संगहीजी श्री कृष्णदास तद्भार्या द्वे प्रथम भार्या कलावती दे द्वितीय भार्या लाड़ी प्रथम भार्यायाः पुत्रः चिरंजीव श्री टोडरमल एतत् सर्व परिवार श्री जिनेन्द्र प्रतिष्ठा चतुःप्रकार संघ भार धुरंधर तथा विनय चातुर्यवदान्य गुणाल्योकृत कल्प पादपः संगही जी श्रीकृष्णदास। जी काख्यस्तने समहोत्साह श्री जिनेन्द्रबिंब प्रतिष्ठालिखित आचार्य कनकमणि।
उक्त लेख चांदखेड़ी जैन मंदिर पर स्थापित है। इस लेख में संस्कृत भाषा का प्रभाव परिलक्षित होने के साथ ही खड़ी बोली भी स्पष्ट दृष्टव्य होती है। इस लेख में यह वर्णित है कि खीचीवाड़ा क्षेत्र में स्थित चांदखेड़ी नगर में माघ मास के शुक्ल पक्ष में सोमवार को संवत् १७४६ (१६८९ ई.) में जब भारत में मुगल बादशाह औरंगजेब का शासन था और इस क्षेत्र में हाड़ा राजपूत वंश के राजा किशोर सिंह का आधिपत्य था। इस समय जैन बघेरवाल जाति के भोपतशाह की भार्या (पत्नि) भक्तादे व पुत्र शाह नानू तथा जिन ने अन्य भक्तों की सहायता से भगवान जिनेन्द्र की मूर्ति की प्रतिष्ठा की। ज्ञातव्य कि इस लेख के रचनाकर जैनाचार्य कनकमणि थे।
झालावाड़ जिलान्तर्गत एक प्राचीन नगर गंगधार है। इस नगर की प्राचीनता का आधार ईसा की पाँचवी सदी से रहा है। मालवा की उपराजधानी के रूप में चर्चित रहे इस नगर में मध्ययुग में जैनधर्म का बड़ा प्रभाव रहा है। इस नगर के मध्य किले की भैरूपोल के द्वार के निकट स्थित एक जैन मंदिर है। इसमें पीतल धातु की जैन तीर्थकर मूर्ति पर एक लेख है :
संवत् १५१२ वर्षे फागुण सुदी ४ शनो ३, वंषे भंभरी गोत्रे भंगजा भार्या संसार दे नामी पुत्र बीरम बेलास्या देया पुण्यार्थ अभिनन्दनम करितं संदेर गच्छे प्रतिष्ठत श्री शान्ति सुरभि ॥ श्री ।। श्री ॥" उक्त जैन अभिलेख संवत् १५७२ (१५१५ ई.) की फागुण सुदी चतुर्थी, शनिवार का