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हाड़ौती की जैन अभिलेख परम्परा शांतिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर है। इसमें मूल नायक तीर्थकर शांतिनाथ की मूर्ति पर एक संख्याक लेख संवत् ११४५ (१०८८ ई.) झालावाड़ राज्य के पुरातत्ववेत्ता पं. गोपाल लाल व्यास ने पढ़ा था। इससे सम्भावना प्रतीत होती है कि यह संख्याक लेख इस मूर्ति का प्रतिष्ठाकाल हो सकता है। कर्नल जेम्स टाड़ ने इसी मंदिर में एक पाषाण अभिलेख अपनी यात्रा के दौरान पढ़ा था, जिसमें ज्येष्ठ तृतीया संवत १००३ (१०४६ ई.) का अंकन है। टाड़ ने इसी लेख में एक यात्री के नाम का भी उल्लेख किया था। इस मंदिर में एक पाषाण स्तम्भ पर संवत् १८५४ (१७९७ ई.) का महत्वपूर्ण लेख है। इसका महत्व यह है कि संवत् १८५४ में भट्टारक नरभूषण महाराज ग्वालियर से यहाँ चातुर्मास के हेतु आये थे, उन्होने यहाँ के जैन समाज पर इस मंदिर की धूप दीप की व्यवस्था हेतु एक मणी अनाज और आधा पैसा ६ गर्मादा कर रूप में देने का निश्चय किया था।
इस प्राचीन जैन मंदिर में कई तीर्थकर मूर्तियां स्थापित हैं, जो मध्ययुगीन है। ये मूर्तियां जैनधर्म के मूलसंघ, सरस्वतीगच्छ, बलात्कार गण के भट्टारक सकलकीर्ति व उनके शिष्यों द्वारा प्रतिष्ठित है। इन मूर्तियों के नीचे बलात्कार गण की ईडर शाखा के दुर्लभ अभिलेख है, जिनका परिचय इस प्रकार है:
संवत् १४९० वर्षे माघवदी १२ गुरौ भट्टारक सकलकीर्ति हूमड़ दोशी मेधा श्रेष्ठी अर्चति।
संवत् १४९२ वर्षे वैशाख वदी सोमे श्री मूलसंघे भट्टारक श्री पदमनंदि देवास्तत्पट्टे, भट्टारक श्री सकलकीर्ति हूमण जातीय .......
संवत् १५०४ वर्षे फागुन सुदी ११ श्री मूलसंघे भट्टारक श्री सकलकीर्ति देवास्तत्पट्टे, भट्टारक श्री भुवनकीर्ति देवा हुमड़ जातीय श्रेष्ठि खेता भार्या लाख तयो पुत्रा ......
संवत १५३५ पोषवदी १३ बुधे श्री श्री मूलसंघे भट्टारक श्री सकलकीर्ति भट्टारक श्री भुवनकीर्ति, भट्टारक श्री ज्ञानभूषण गुरूपदेशात् हुमड़ श्रेष्ठि पद्माभार्या भाऊ सुत आसा भ. कडू सुत्कान्हा भा. कुदेरी भ्रातधना भा. वहहनु एते चतुविशंतिका नित्य प्रणमंति।
यहाँ प्रतिष्ठित एक तीर्थकर पार्श्वनाथ मूर्ति पर १६२० वैशाखसुदी ९ बुध श्री मूलसंघे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे कुन्दकुन्दाचार्याम्नाये भ. श्री पद्मनन्दि देवास्तत्पट्टे सकलकीर्ति देवास्तत्पट्टे सुमतिकीर्ति गुरूपदेशात्, हुबड़ जातीय मंदिर गौत्रे संघवी देवा भा. देवाभदे तत्सुत संघवी भार्या परवत् भार्या परमलदे तत्भ्रातृ सं. हीरा भा. कोडमदे तत्भ्रातृ सं. हरष भा. करमादे सुत लहुआ भा. मिन्ना, भ्रातृ लाडण भा. ललितादे सुतं थापर सं. जेमल भा जेताही भ्रा. डूंगर भा. धानदे भ्रा. जगमा सं. हीआ, बलादे एतै, सह संघवी वीवादो सागवाड़ा वासूव नित्यं प्रणमंति।
(ज्ञातव्य है कि यह तीर्थकर मूर्ति सागवाड़ा जिला बांसवाड़ा में प्रतिष्ठित हुई थी