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हाड़ौती की जैन अभिलेख परम्परा डी.सी. सरकार की मान्यता है कि सन् ११३४ ई. में २१ मार्च बृहस्पतिवार था अतः मंगलवार के स्थान पर बृहस्पतिवार होना चाहिये। लेख का पाठ इस प्रकार है। यद्यपि इसका आधा भाग भग्न है।
(शोश्रित) माहिल्ल भर्यान्तिमा..........(श) स्य तिलके सूर्याश्रमे प (त्त) ने श्री पालो गुणापाल
कश्चविपु(ले)खंडी - ले कुलेसुव (य) चन्द्रमा सविवाम्ब (ब) रतले-प्राप्तो क्रमण-मालवे (१)श्रीपाल दिहादेव पालात्म (तना) यो दनेना चिन्तामणि
(ह) सा(न्तेहश्री) गुणपाल ठकु (क्कु) र सुतादं रूपेण कामोपमात पुनिमर्थ जन इल्हुक प्रभारिव (त) यः पुत्रान (सच) ये ग्रा न वे ते ह (तैह) सव्वैरवि कोशवर्द्धन तरत्नात्रयः (याम) करित (म) (२) वर्षे रूद्र सते (तै) र गतैः सु (शु) भता मेरे का नवति अधिकैर वैसाख (खे) धवले द्वितीय दिवसे
देवान प्रतिष्ठा(पितान) वन्दते नत देवपाल तन्य माल्हु सधान्चादयः पु (पू) नि शान्ति सुताश्च नेमी भरतः श्री शांति सत्कु (म) थ्वारान (३) दमड़ी सूत्र धारोतपन्नाहः (न्ना) शिला-श्री सूत्र धरिन शान्ति (कु) निथु (थ्व अ) र नाम (मा) नो जयन्तु धारिता जिनाः (४) देवपालसुत इल्हुक गोष्ठी विशाल लल्लुकः (काह) मौकाह हरिश्चन्द्रादिः गागास्व (सु) पुत्र (ह) अल्लकः सम्वत् १९९१ वैसाख
सुदि २ (मंगल दिने प्रतिष्ठा करापित (:)- । इस अभिलेख में सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इसमें जैनधर्म की खण्डेलवाल जाति का वर्णन है। इस जाति से सम्बन्धित राजस्थान की धरती पर अब तक अवाप्त होने वाला यह प्रथम पाषाण अभिलेख के रूप में मान्य है। इसके अलावा इसमें तीन भौगोलिक