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अनेकान्त 65/2, अप्रैल-जून 2012
यहीं की एक अन्य तीर्थकर मूर्ति पर स्थानीय भाषा में कुछेक व्यक्तियों के नाम है। यह लेख १२वीं सदी का है। जिसमें फाल्गुन बदी, १, वि.स. १२३७ (११८० ई.) का अंकन है।
बांरा जिले का शेरगढ़ स्थल पुरातत्व की दृष्टि से अतिमहत्त्वपूर्ण है। यहां के एक कुए में जैन अभिलेख बड़ा महत्वपूर्ण है। इसका अंकन अति सुन्दर है। इस लेख में ३४ पंक्तियां थी, परन्तु इसके शिलापट्ट का मध्य भाग भग्न होने से इसकी कई पंक्तियां नष्ट हो गई। इस अभिलेख में पंक्ति संख्या ६ से २८ तक नष्ट है, परन्तु १ से ५ तक और २९ से ३४ तक पठनीय है। इसमें भी संख्या २९ से ३४ तक की प्रति पंक्ति में ४६ व पंक्ति संख्या ६ से २८ की प्रति पंक्ति में २०-२० अक्षर है। इस लेख में “श्री वरसेन मुनि ना कृतम-इदम्" शब्द का अंकन है। प्रतीत होता है कि लेख की रचना मुनि वरसेन द्वारा की गई होगी, जो पद्य में है। यह उक्त रचनाकार की विद्वता को भी प्रामाणित करती है। लेख का वर्तमान पठनीय मूल अंश इस प्रकार है :
तेना स्तुतो वचसा मनसाः प्रसादात् श्री वरसेन मुनेर मितावाचायत तिरितिल्ली तम अजा भदन्तेः तत् क्षमितव्यय उतरोस्यायसढोर आत्मज दोशा देहाजनेतुः ।। द्विशचद्द (त.) सम्क ऐका मिते था वेक्रमे समा - समूहे सीता सप्तमी मधु चामा से नव चे। - त्यसमदमनी महात्वसो नेमि जिनस्य करित पुत्रेण व (बोल्देवस्य राघवेण मनिषिता (ना) दान धर्म
निरातेना भष्येन गुनासा (स्या) लिना। - उल्लेखनीय है कि इस अभिलेख का आरम्भ "ओ"। नमो वीतरागाय नमः" से है। जो जैनधर्म का मूलमंत्र है। इसके पश्चात् १६वां श्लोक “बसन्द तिलक" छन्दयुक्त है। इस लेख में जैन आचार्यों तथा तीर्थकरों का यशोगान है। लेख की एक पंक्ति में चैत्य में जैन तीर्थकर "नेमिनाथ" के महोत्सव को चैत्र मास के शुक्लपक्ष में वि.सं.११६२ (११०५ ई.) में मनाने का हवाला है। यह लेख इसी महोत्सव से सम्बन्धित है। लेख में इसे अंकित करने वाले शिल्पकार का नाम “राघव" तथा उसके पिता का नाम “बलदेव” लिखा है। यहाँ से प्राप्त एक लघु जैन लेख वि.स.१२८५ (१२२८ ई.) का है। इसमें एक प्याऊ पुण्यार्थ बनाने मात्र का हवाला है।
उक्त दुर्ग के बाहर एक जैन मंदिर में प्रतिष्ठित तीन तीर्थकरों की मूर्तियों के मध्य पादपीठ पर अभिलेख हैं ये तीन तीर्थकर मूर्तियां शांतिनाथ, कुंथनाथ तथा अरिनाथ स्वामी की है। लेख की भाषा संस्कृत व लिपि देवनागरी है, परन्तु इसमें प्राकृत का प्रभाव दिखायी देता है। यह लेख वि.स. ११९१ की वैशाख सुदी २ मंगलवार २१ मार्च ११३४ ई. का है। परन्तु पुरातत्वविद्