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हाड़ौती की जैन अभिलेख परम्परा उस समय इस भूभाग पर (परमार) नृपति नरवर्मन देव का राज्य था। अटरू की दो अन्य जैन तीर्थकर मूर्तियों पर निम्न अभिलेख पठन में आते है, जो वर्तमान में कोटा के उक्त संग्रहालय मे है :
श्री नर वर्मन देव राज्ये संवत ११८८ (१) आषाढ़ वदी १ अ
गुवालान्वय साधुजिनवा ल सुत यम देव पु. उक्त लेख में उक्त जैन तीर्थकर मूर्ति की प्रतिष्ठा का वर्णन है। इस मूर्ति की प्रतिष्ठा राजा नरवर्मन देव के काल में संवत् ११८८ में अग्रवाल साधु जिनवाल के पुत्र यमदेव द्वारा करवाई गई थी। एक अन्य मूर्ति पर अंकित लेख इस प्रकार है :
“श्री सर्बनधाचार्य" “साधु सर्व कानन्दि" । यह लेख अटरू की जैन तीर्थकर पार्श्वनाथ की मूर्ति पर अंकित है, जो सम्प्रति उक्त संग्रहालय में है। इसमें साधुओं के नामोल्लेख है। अक्षरों के शिल्प से यह लेख ईसा की १०वी सदी का माना जा सकता है। उक्त लेखों के अध्ययन से प्रतीत होता है कि मालवा के परमार नरेशों के युग में उक्त नगर में जैन धर्मावलम्बियों का बाहुल्य था तथा वहां जैन साधुओं तथा उनके संघों का आवागमन रहता था।
बांरा जिले का रामगढ़ नामक कस्बा भी जैनधर्म का बड़ा केन्द्र रहा है। इस स्थान के निकट पहाड़ पर एक दुर्ग में कई जैन मंदिर है, जिनके जैन अभिलेख इस प्रकार है। उक्त दुर्ग के उत्तर में एक जैन तीर्थकर मूर्ति पर लघु लेख इस प्रकार है जो विक्रम संवत् १२११ ज्येष्ठ सुदी १५ का है। जो संस्कृत में है।
“आचार (य) माणिक्य देव, लक्ष् (मी)धर, सूत्रधार वालिम।" दुर्ग की एक दालान के बाहर एक जैन तीर्थकर मूर्ति स्थापित है, इस पर देवनागरी में संस्कृतनिष्ट भाषा का एक भग्न अभिलेख है जो मंगलवार, चैत्र सुदी १४ वि.स. १२२४ (४ अप्रैल ११६७ ई.) की तिथि का प्राप्त हुआ। इस लेख में किसी व्यक्ति द्वारा जैन स्तुति करने का हवाला है। लेख में आचार्य माणिक्यदेव व साधु कालीचंद के पुत्र साधु देल्हा मेदपाट वासी तथा एक व्यक्ति महिचन्द्र का नामोल्लेख है।
दुर्ग के उत्तर में एक अन्य जैन मूर्ति के निकट के स्तम्भ पर विक्रम संवत् १२३२ (११७५ ई.) का लेख है। यह संस्कृत में है। इसमें कमलदेव की निषेधिका के निर्माण का उल्लेख है। कमलदेव, मणदेव का शिष्य बताया है। इस निषेधिका का निर्माण जल, पदमसिंह व महाघर नाम के व्यक्तियों ने करवाया था। लेख में सोमदेव (पंडित) शिष्य कर्मदेव का नामोल्लेख है। ये सभी तपगच्छ से सम्बन्धित रहे हैं।
इसी दुर्ग के उक्त स्थल में एक खड़गासन जैन तीर्थकर मूर्ति के नीचे १३वी सदी का संस्कृतनिष्ट एक अभिलेख जो मूलतः स्तुति है, मिलता है। इसमें कुछेक भक्तों के नामों का उल्लेख भी है।
आल्हा पुत्र राय लखम देव ठाकुर हुन्दा, देल्हु दामोदर, कुलिचन्द