Book Title: Anekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 13
________________ हाड़ौती की जैन अभिलेख परम्परा तीर्थकर मूर्ति का अंकन है। लेख का पाठ इस प्रकार है : ॥ॐ॥ श्री सर्व.......पति ग. नी.... रति पति ....... रण जी.. .......संवत् १३३३.......श्रीमूल संघेबलात्कार गणे सरस्वती गच्छे कुन्द कुन्दाचार्यन्वये भट्टारक श्री प्रभादेव.... सिष्यः श्री पदमनन्दि देवः तस्मिन। किसी जैनमतीय श्लोक से आरम्भ उक्त अभिलेख में वर्णित है कि वि.स.१३३३ (१२७६ ई.) में मूल संघ के बलात्कार गण और सरस्वतीगच्छ की कुन्दकुन्दाचार्य परम्परा के भट्टारक प्रभादेव व उनके शिष्य पद्मनन्दि थे। एक अन्य स्तम्भ पर वि.स. १३५१ का जैन अभिलेख निम्नांकित प्रकार का है, जो ४ पंक्तियों का है। ॥ ॐ स्वस्ति श्री संवतु १३५१ वर्ष काती सुदी १५ भट्टारक प्रताप देव सा ...... सिष्य ...... पण देव जैन मतीय एक अन्य अभिलेख ६ पंक्तियों का है, जो मूलतः मृत्यु अभिलेख है। यह संस्कृत भाषा में है। ऊँ संवतु १३५१ वर्षे काती वदि १५ भट्टारक प्रता दे. वतत्सि य भ. ....... देव, साधु जगदेव पुत्र पद्म सींह गल वा वाला हालू प्रणाम ति सुम। उक्त लेख में भट्टारक प्रतापदेव के शिष्य की मृत्यु कार्तिक सुदी १५ संवत् १३५१ (१२९४ ई.) में होना ज्ञात होता है। यद्यपि शिष्य नाम स्पष्ट रूप से पठन में नही आया परन्तु ज्ञात होता है उक्त अवसर पर साधु जगदेव के पुत्र पदमसिंह तथा गलवा वाला हालू उपस्थित थे। एक अन्य स्तम्भ पर ६ पंक्तियों का जैन अभिलेख इस प्रकार है। इसके शीर्ष पर जैन आचार्य की मूर्ति का अंकन है : संवत् १५१ (५), आश्विन मूल संघे, छत्रीकार पिता .......आचार्य उक्त अभिलेख की तिथि संवत् १५१५ है। इसमें मूल संघ के किन्ही जैन आचार्य की मूर्ति उत्कीर्ण है। सम्भव है इन्ही दिवंगत जैनमुनि की स्मृति में इस छतरी का निर्माण कराया गया होगा। इस नगर के सरोवर नवल सागर के दक्षिण भाग में कंवर की छतरी के समीप एक छतरी है। इसमें वि.स. १५४३ (१४८६ ई.) का ७ पंक्तियों का एक जैन अभिलेख है, जो सती से सम्बन्धित है। ॐ सिद्धि ॥ संवत् १५४३ वर्षे भाग सुदी ५ शनिवारे उत्तराषाढ

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