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हाड़ौती की जैन अभिलेख परम्परा
- ललित शर्मा प्राचीन खण्डहरों और मुद्राओं की भांति इतिहास, पुरातत्व की पुष्ठ जानकारी हेतु अभिलेख सर्वाति महत्वपूर्ण और विश्वसनीय साधन है। अनेक स्थलों पर जहाँ पुरातत्त्व मूक और अस्पष्ट होता है, वहाँ अभिलेखों से ही जानकारियाँ मिलती हैं और इसीलिये “बोलते पाषाण" कहकर पुरातत्वविदों ने इनकी महत्ता को स्वीकारा है। अभिलेख अधिकांशतः खण्डहर, इमारतों, मन्दिरों, मठों, मूर्तियों की पीठिकाओं, दबी बस्तियों, मृत्युस्थलों, बावड़ियों, स्तम्भों आदि पर प्राप्त होते हैं। इनकी खोज और पठन बड़ी श्रमसाध्य होती है। इनमें एक एक शब्द, संवत् के प्रति मुक्त सोच, शुद्धिकरण तथा इनके भावार्थ सबसे अधिक दुष्कर कार्य है। ऐसे दुष्कर मन्थन, अध्ययन के पश्चात् ही इनसे तत्कालीन संस्कृति, उपलब्धि और वंशानुक्रम व अनेक कार्यों का प्रामाणिक एवं मान्य विवरण प्राप्त होता है।
उल्लेखनीय है कि पुरातत्व के अलग अलग काल खण्डों में अलग अलग लिपियाँ, मत आदि प्रचलित रहे हैं अतः इन सभी की शैली भी इनमें प्रयुक्त होती है, जिससे तत्कालीन भाषा, कार्यों तथा विचारों का उद्देश्य प्रचुरता से प्राप्त होता है। यहाँ प्रस्तुत पुरा प्रसंग में वर्तमान हाड़ौती प्रदेश (कोटा, बून्दी, बांरा, झालावाड़ जिलों) के अन्तर्गत विभिन्न नगरों, कस्बों, गाँवों तथा उनके मंदिरों आदि की मूर्तियों स्तम्भों, से अवाप्त जैनधर्म के विभिन्न अभिलेखों का परिचयात्मक विवरण किया गया है, जिनसे इस क्षेत्र में जैनधर्म के प्रभाव तथा संस्कृति का परिचय मिलता है।
क्षेत्र के झालावाड़ जिले के खानपुर कस्बे का अतिभव्य चांदखेड़ी का दिगम्बर जैन मंदिर इस दिशा में शिलालेख की दृष्टि से अतिमहत्त्वपूर्ण इसलिये माना जा सकता है कि यह मंदिर प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभदेव का है, इसमें ऋषभदेव की मूर्ति पर संवत् ५१२ का अंकन है। यद्यपि इस संख्याक लेख का प्रामाणिक आधार अभी भी गवेष्य अवश्य है, परन्तु सम्भावना हो सकती है कि यह वीर जैन संवत् हो। क्योंकि वीर संवत् से सम्बन्धित लेखों की प्राचीन जिन मूर्तियां राजस्थान के जोधपुर जिलान्तर्गत मण्डोर के धुधेला तालाब के खोखर मंदिर के पीछे मिली थी, जिन पर वीर संवत् २०३ अंकित है, इस आधार पर यदि चांदखेड़ी जैन मंदिर की उक्त मूर्ति में खुदे ५१२ संवत् का प्रामाणीकरण हो जाये तो यह क्षेत्र जैन धर्म के पुरातात्विक इतिहास में नया पृष्ठ खोल सकता है।
बून्दी जिले के केशोरायपाटन नगर में एक टीले पर जैन मंदिर है, जिसमें अनेक तीर्थकरों की मूर्तियां है। इनमें सबसे प्राचीन मूर्ति ८ इंच ऊँची श्यामवर्णीय है, इसकी निर्माण तिथि ज्येष्ठ सुदी ३ संवत् ६६४ (६०७ ई.) स्पष्ट अंकित है। यह तिथि प्रदेश के प्राचीनतम जैन अभिलेखों में मानी जा सकती है। यहाँ की अन्य जैन तीर्थकर मूर्तियों पर वि.स. १३२१