Book Title: Anekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 12
________________ अनेकान्त 65/2, अप्रैल-जून 2012 (१२६४ ई.), वि.स. १३५० (१२९३ ई.), वि.स. १४१९ (१३६२ ई.), वि.स. १५४९ (१४९२ ई.), वि. स. १५८१ (१४२४ ई.), वि.स. १७४६ (१६८९ ई.), वि.स. १८२६ (१७६९ ई.), वि.स. २०१६ ( १९५६ ई.), वि.स. २०३२ (१९७५ ई.) के अभिलेख उत्कीर्ण है, जिनसे ज्ञात होता है कि उक्त जैन तीर्थंकर मूर्तियां उक्त संवत में निर्मित हुई थी। इन लेखों में तिथि, वार भी है, परन्तु मूर्तियों के जलाभिषेक के कारण वे अंकन धुंधले होने से स्पष्ट रूप सें पठन में नहीं आते हैं। इन अभिलेखों से यह तो ज्ञात हो ही जाता है कि ईसा की ७वीं सदी से लेकर इक्कीसवीं सदी तक निरन्तर जैनधर्म का प्रभाव इस क्षेत्र में अबाध गति से होता रहा है। 12 मुख्यालय बून्दी नगर में भी जैनों के अनेक परिवार १४वीं सदी में निवास करते थे। उनके प्रमाण यहां बने जैन मंदिरों की भव्यता से लगा सकते है। यहां के पार्श्वनाथ जैन मंदिर की तीर्थंकर पार्श्वनाथ मूर्ति पर इसके निर्माण की तिथि वि.स. १७४४ (१६८७ ई.) अंकित है। इसी के निकट एक अन्य तीर्थकर की यहां स्थापित मूर्ति पर वि.स. १३३१ (१२७४ ई.) निर्माण तिथि अंकित है। बून्दी जिलान्तर्गत एक प्राचीन नगर नैनवा है। इतिहास में इस नगर का नाम जैनधर्म के प्रमुख केन्द्र के रूप में विख्यात है। यहाँ अनेक ऐसे जैन अभिलेख है, जिनमें जैन मूल संघों के गणों का नामोल्लेख है। यहाँ से प्राप्त एक अभिलेख वि.स. १०८४ (१०२४ ई.) का है, परन्तु इसका विवरण अभी गवेष्य है। यहीं से प्राप्त वि.स. १९८३ (११२६ ई.) का अभिलेख भी इसी स्थिति में है। द्वितीय एक अन्य लेख यहाँ के जैन स्तम्भ का है, इसकी भाषा संस्कृत है । परन्तु इसमें २ पंक्तियां ही पठन में आती है। अभिलेख के ऊपरी भाग में तीर्थंकर महावीर स्वामी की ९ इंच की मूर्ति का अंकन है, जबकि लेख के अक्षरों का आकार ०.५ गुणा ०.४ वर्ग इंच है। लेख की २ पंक्तियों का पाठ इस प्रकार है : सं. १९८३ काति सुदी १० धर्कट जाति साहि ल पुत्र हरिल स्वर्ग गता आशय है कि धर्कट जाति के साहिल नामक व्यक्ति के पुत्र हरिल का स्वर्गवास कार्तिक सुदी दसमी संवत् ११८३ (११२६ ई.) को हुआ । सम्भवतः लेख के अंकन की यही तिथि मानी जा सकती है। इसी स्थल पर स्थापित एक अन्य स्तम्भ पर जिसका आकार माप ४८ गुणा १२ इंच तथा अंकित अक्षरों का माप ०.१ गुणा ०.१ इंच है मूलतः संस्कृत निष्ठ है। यह ३ पंक्तियों मात्र का जैन अभिलेख है, जिसके उर्ध्व भाग पर जैन तीर्थंकर मूर्ति का अंकन है। यद्यपि लेख के सम्पूर्ण अक्षर कोशिशों के बाद भी सुपाठ्य नहीं हो पाये परन्तु फिर भी जो कुछ पठन में आया उसका पाठ निम्नतया है : १, संवत् १३३...... वदि । थींद देव .... पुत्र । प्रणमत" । उक्त पठन से ज्ञात होता है कि उक्त तिथि पर थीदं देव के किसी पुत्र की मृत्यु हुई थी। इसी क्रम में यहाँ के एक अन्य स्तम्भ पर जिसका आकार २४ गुणा ११ इंच है। इसमें खुदे अक्षर ०७ गुणा ०१ इंच के हैं इसमें ६ पंक्तियों का एक अभिलेख है, जिसके शीर्ष पर

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