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अनेकान्त 65/2, अप्रैल-जून 2012
नक्षत्रे सा. नाथ ....... को दया.... सा ...... गैपा सुत सती सी ला सहित देव लो ...... के गता ....... सुमं भव
तु ॥ साके १४०८॥ उक्त लेख मूलतः सती लेख है, जो गैपा के पुत्र के साथ सती हुई, उसकी पत्नी शिला का है, परन्तु इसमें गैपा के पुत्र (शीला के पति) का नामोल्लेख नहीं है।
इसी नगर के छोटा तालाब के किनारे एक जैन अभिलेख वि.स. १९८९ (१८७५ ई.) का है। इसमें कई महत्वपूर्ण तथ्यों का हवाला है।
संवत् १९८९ विक्रमादेय चैत्र मासे शुक्ल पक्षे षष्ठयांतियौ मंगलवासरे श्री महाराजाधिराजे बून्दी नरेश ईश्वरीसिंह जी क राज्यान्तर्गते नैणवां नगरे बिम्ब प्रतिष्ठायां दीक्षा महोत्सव समये नीचे की पट्टिका का अंकित लेख इस प्रकार है :
दिगम्बर जैन सम्प्रदाय मूल संघ सरस्वती गच्छे बलात्कारगणनान्तर्गत अग्रवंशोदभवानू आग्रहेण प्रतिष्ठाचार्ये वर्ये केकड़ी नगर निवासी सिमिः पण्डित धन्नालाल महोदयै
॥ श्री जिनेन्द्र पादुका एषा संस्थापिते।" उक्त लेख में वर्णित वि.स. १९८९ में बून्दी के नरेश ईश्वरसिंह के राज्यकाल में उक्त नगर में जैन मूर्ति की प्रतिष्ठा एवं दीक्षा के अवसर पर दिगम्बर जैन सम्प्रदाय के मूल संघ के सरस्वती गच्छ के बलात्कार गणान्तर्गत अग्रवाल वंशीय केकड़ी (अजमेर) वासी धन्नालाल पंडित ने तीर्थकर महावीर स्वामी की चरणपादुका स्थापित कराई।
हाडौती क्षेत्र के बांरा जिले में भी जैनधर्म के अनेक अभिलेख उल्लेखनीय है जो इस बात के स्पष्ट प्रमाण है कि यह क्षेत्र भी प्राचीनकाल से ही जैनधर्म से प्रभावित रहा है जिसका प्रभाव आज भी है। क्षेत्र के अटरू कस्बे के बाजार में भैसाशाह नामक एक श्रेष्ठि द्वारा निर्मित जैन मंदिर है, इसमें प्रतिष्ठित तीर्थकर मूर्ति पर केवल तिथि का अंकन लेख इस प्रकार है :चैत्र सुदी ५, मंगलवार संवत् ५०८ (४५१ ई.) ___इसी नगर से एक पुरातत्व महत्व का सहस्त्र जिनपट्ट मिला था, जो सम्प्रति कोटा के राजकीय पुरातत्व संग्रहालय में है। इस पट्ट पर निम्न लेख अंकित है :
ई. ॥संवत् ११६५ ज्येष्ठ सुदी, पंडित श्री मल्लोक नं...दि छात्रेण शुभंकर (सुभंकर) पुत्रैण सौवार्णिक सहदेवेन कभक्षय निमितेन कारापिंत। श्री परवर्म देव राज्ये।"
उक्त लेख से ज्ञात होता है कि उक्त नगर में श्रेष्ठि सहदेव ने नन्दि मल्लोक के शुभंकर नामक शिष्य की आज्ञा से उक्त जैन पट्ट की प्रतिष्ठा संवत् ११६५ में करवायी थी।