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विचारणीय
जैनों के सैद्धान्तिक अवधारणाओं में क्रम परिवर्तन-2
-नंदलाल जैन
कार्ल सागन ने बताया है कि पुरातन धार्मिक मान्यताओं या विश्वासों के मूल में बौद्धिक छानबीन के प्रतिरोध की धारणा पाई जाती है। यही वृत्ति वर्तमान धार्मिक अनास्था का कारण है। इसी कारण, गैलीलियो, स्पिनोजा, व्हाइट आदि जिन पश्चिमी अन्वेषकों ने ऐसी खोजे की जो प्रचलित धार्मिक मान्यताओं के विरोध में थी, उन्हें दण्डित किया गया। यह भाग्य की बात है कि विश्व के पूर्वी भाग में ऐसा नहीं हुआ। परन्तु यह माना जाता है कि अनेक प्राचीन धार्मिक मान्यतायें प्रचलित सामाजिक, राजनीतिक (जैसे राजा के देवी अधिकार आदि) एवं आर्थिक (गरीब और धनिक का अस्तित्व आदि) स्थिति को यथास्थिति बनाये रखने में सहायक रही हैं। जो धर्म संस्थायें इनमें होने वाले परिवर्तनों के प्रति संवेदनशील नहीं होती, वे जीवन्त और गतिशील नहीं रह पाती। जो धर्मसंस्थायें बौद्धिक एवं वैज्ञानिक विश्लेषण पर जितनी ही खरी उतरती हैं, वे उतनी ही दीर्घजीवी होती है। उनमें उतना ही सत्यांश होता है।
___ आधुनिक तर्कसंगत विश्लेषण एवं अनुगमन के युग में सागन का मत जैन मान्यताओं परं पर्याप्त मात्रा में लागू होता हैं यही कारण है कि उसकी मान्यताओं में समय-समय पर परिवर्धन, विस्तारण एवं संक्षेपण हुए हैं और . वह युगानुकूल बना रहा है। इन प्रक्रियाओं के कुछ उदाहरण 'साइंटिफिक कन्टेन्ट्स इन जैन कैनन्स' (पार्श्वनाथ विद्यापीठ, काशी 1996) में विवरणित है। तुलसी प्रज्ञा 23-4 में इससे सम्बन्धित आठ प्रकरण दिये गये हैं। प्रस्तुत अध्ययन इस शृंखला का दूसरा खण्ड है। इसमें 11 प्रकरण और दिये जा रहे हैं। ये मुख्यतः धार्मिक आचार एवं विचारों से संबंधित हैं। ये इस तथ्य के संकेत हैं कि विविध जैन अवधारणायें समय-समय पर परिवर्धित और विकसित होती रही हैं और अपनी वैज्ञानिकता का उद्घोष करती रही है।