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१४ बर्ष ३५, कि.१
अनेकान्त
कहते हैं।" इसी बात को पञ्वाध्यायीकार ने लिखा है। क्षेत्र विषयक शास्त्र का ज्ञाता किन्तु वर्तमान में उसके उपमोहनीय ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय कर्म का योग से रहित जीव आगम द्रव्यक्षेत्र निक्षेप है।"नो आगम घात करने से अरिहन्त नाम है इन गुणों के बिना किसी का द्रव्य तीन प्रकार का है ज्ञायक शरीर, भावि और तद्रव्यअरिहन्त या अर्हन्त नाम रखना नाम निक्षेप का उदाहरण तिरिक्त । जो ज्ञाता का शरीर है वह ज्ञायक शरीर कहहै।" पुस्तक, पत्र, चित्र आदि मे लिखा गया लिप्यात्मक लाता है वह त्रिकाल गोचर ग्रहण किया जाता है अर्थात नाम भी नाम निक्षेप है।"
उसके भूत-भविष्यत् और वर्तमान ये तीन भेद है। तद् ___ स्थापना क्षेत्र निक्षेप-बुद्धि के द्वारा इच्छित क्षेत्र व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्य के दो भेद हैं एक कर्म और दूसरा के साथ एकत्व को प्राप्त हुए अर्थात् जिनमें बुद्धि के द्वारा नोकर्म । आगम द्रव्य मे आत्मा का ग्रहण किया गया है, इच्छित क्षेत्र की स्थापना की गई है ऐसे सद्भाव और नो आगमद्रव्य मे उसके परिकर, शरीर, कर्मवर्गणा आदि असद्भाव स्वरूप काष्ठ, दन्त और शिला आदि स्थापना का गृहण है ।" क्षेत्र निक्षेप है।" अमृतचन्द मूरि ने लिखा है कि परमा भाव क्षेत्र निक्षेप-तत्कालवर्ती पर्याय के अनुसार ही तथा काष्ठ आदि के सम्बन्ध में (यह वह है) इस वस्तु को सम्बोधित करना या मानना भाव निक्षेप है इसके प्रकार अन्य वस्तु में जो किसी अन्य वस्तु की भी दो भेद है आगम भाव निक्षेप और नो आगमभावव्यवस्था की जाती है वह स्थापना निक्षेप कहलाता निक्षेप । जैसे अर्हत् शास्त्र का ज्ञायक जिस समय उस ज्ञान है।" स्थापना के दो भेद हैं साकार और निराकार। मे अपना उपयोग लगा रहा है उसी समय अर्हत है यह कृत्रिम या अकृत्रिम बिम्बो मे अर्हन्त परमेष्ठी की स्थापना आगमभावनिक्षेप है जिस समय उसमे अहंत के समस्त गुण साकार स्थापना है और क्षायिक गुणों में अर्हन्त की स्था- प्रकट हो गये है उस समय उस उसे अहंत कहना तथा उन पना को निराकार स्थापना कहते है।"
गुणो से युक्त होकर ध्यान करने वाले को केवल ज्ञानी द्रव्य क्षेत्र निक्षेप-जो गुणो के द्वारा प्राप्त हुआ था कहना नो आगमभावनिक्षेप है। क्षेत्र विषयक प्राभत के या गणों को प्राप्त हुआ था अथवा जो गुणों के द्वारा प्राप्त ज्ञाता और वर्तमानकाल मे उपयुक्त जीव को आगमभाव किया जायेगा या गणो को प्राप्त होगा उसे द्रव्य कहते क्षेत्रनिक्षेप कहते है जो आगम में अर्थात् क्षेत्रविषयक हैं। किसी द्रव्य को आगे होने वाली पर्याय की अपेक्षा शास्त्र के उपयोग के बिना अन्य पदार्थ मे उपयुक्त हो उस वर्तमान मे ग्रहण करना द्रव्यनिक्षेप है ऐसा जिनेन्द्र देव कहते जीव को अथवा औदयिक आदि पाच प्रकार के भावो को हैं।"पञ्चाध्यायीकार ने कहा है कि ऋजुसूत्रनय की अपेक्षा नो आगमभावक्षे त्रनिक्षेप कहते हैं।" नही रखने वाला किन्तु भाविनैगम आदि नयो की अपेक्षा जो निक्षेप नय और प्रमाण को जानकर तत्व की रखने वाला व्यनिक्षेप है।" आगमद्रव्यक्षेत्र और नोआगम- भावना करते हैं वे वास्तविक तत्व के मार्ग में सलग्न होकर द्रव्यक्षेत्र के भेद से द्रव्य क्षेत्र दो प्रकार का है उसमे से वास्तविक तत्व को प्राप्त करते हैं।"
संदर्भ सूची १. तत्वार्थ सूत्र १-५।
५. न्यायकुमुदचन्द्र का० ७३-७६ विवृति पृ० ७६६ । २. संशये विपर्यये अनध्यवसाये वा स्थित तेम्योऽयसार्य ६. प्रमाणनययोनिक्षेपण आरोपण निक्षेपः ॥ आलाप निश्चये क्षिपतीति निक्षेपः ।
पद्धति-देवसेनाचार्य अनुः न. रतनचन्द्र मुख्तार पृ. १८२ -षटखण्डागम खण्ड १ भाग ३, ४, ५ पुस्तक ४ ७. जुत्तीसुजुत्तमग्गे ज चउभेएण होइ खलुणवणं । सं० हीरालाल जैन पृष्ठ २।।
-कज्जसदि णामादिसु तं णिक्खेवं हवे समए ॥ द्रव्य ३. अप्रस्तुतार्थापाकरणात् प्रस्तुतार्थ व्याकरणाच्च निक्षेप. स्वभाव प्रकाशक नयचक्र गाथा २७० । फलवान् ।। लघीयस्त्रय स्वो० वि० पृ० २६ ।
८. पञ्चाध्यायी १-७४० । ४. स किमर्थः अप्रकृत निराकरणाय च । सर्वार्थ सिद्धि १-५ ६. तत्वार्थसार अमृतचन्द्र सूरि-सं०५० पन्नालाल साहित्या