Book Title: Anekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 36
________________ Regd. with the Registrar of Newspaper at R.N. 106912 वीर-सेवा-मन्दिर के उपयोगी प्रकाशन स्तुतिविद्या : स्वामी समन्तभद्र की अनोखी कृति, पापो के जीतने की कला, सटीक, सानुवाद पर श्री जगलकिशोर मुख्तार की महत्त्व की प्रस्तावनादि से अलंकृत, सुन्दर, जिल्द-सहित । २.५० पक्त्यनुशासन : तत्त्वज्ञान से परिपूर्ण, समन्तभद्र की असाधारण कृति, जिसका अभी तक हिन्दी अनुवाद नही हुमा था। मुख्तार श्री के हिन्दी अनुवाद और प्रस्तावनादि से अलंकृत, सजिल्द । ... २-५. समीचीन धर्मशास्त्र : स्वामी समन्तभद्र का गहस्थाचार-विषयक प्रत्युत्तम प्राचीन ग्रन्थ, मुख्तार श्रीजुगलकिशोर जी के विवेचनात्मक हिन्दी भाष्य और गवेषणात्मक प्रस्तावना से युक्त, सजिल्द । नग्रन्य-प्रशस्ति संग्रह, भाग १: संस्कृत और प्राकृत के १७१ अप्रकाशित ग्रन्थों की प्रशस्तियों का मगलाचरण सहित अपूर्व संग्रह, उपयोगी ११ परिशिष्टों और पं० परमानन्द शास्त्रों की इतिहास-विषयक साहित्य परिचयात्मक प्रस्तावना से अलंकृत, सजिल्द । ... जनप्रन्य-प्रशस्ति संग्रह, भाग २: अपभ्रश के १२२ अप्रकाशित ग्रन्थों की प्रशस्तियों का महत्त्वपूर्ण सग्रह । पचपन ग्रन्थकारों के ऐतिहासिक ग्रंथ-परिचय और परिशिष्टों सहित । सं. पं. परमानन्द शास्त्री। सजिल्द। १५.०० समापितन्त्र और इष्टोपदेश : प्रध्यात्मकृति, पं० परमानन्द शास्त्री की हिन्दी टीका सहित पवणबेलगोल और दक्षिण के अन्य जैन तीर्थ : श्री राजकृष्ण जैन ... ग्याय-दीपिका : मा० अभिनव धर्मभूषण की कृति का प्रो. डा० दरबारीलालजी न्यायाचार्य द्वारा स० अनु०। १०.०० मैन साहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश : पृष्ठ सख्या ७४, सजिल्द । कसायपाहडसुत्त : मूल ग्रन्थ की रचना आज से दो हजार वर्ष पूर्व श्री गुणधराचार्य ने की, जिस पर श्री यतिवृषभाचार्य ने पन्द्रह सौ वर्ष पूर्व छह हजार श्लोक प्रमाण चूर्णिसूत्र लिखे । सम्पादक पं हीरालालजी सिद्धान्त-शास्त्री। उपयोगी परिशिष्टों और हिन्दी अनुवाद के साथ बड़े साइज के १००० से भी अधिक पृष्ठों में । पुष्ट कागज और कपड़े की पक्की जिल्द । २५-०. जन निबन्ध-रत्नावली: श्री मिलापचन्द्र तथा श्री रतनलाल कटारिया म्यानशतक (ध्यानस्तव सहित) : संपादक पं० बालचन्द्र सिद्धान्त-शास्त्री १२-०० धावक धर्म संहिता :श्री दरयावसिंह सोषिया जन लक्षणावली (तीन भागों में) : सं० ५० बालचन्द सिद्धान्त शास्त्री प्रत्येक भाग ४०.०० समयसार-कलश-टोका : कविवर राजमल्ल जी कृत ढूंढारी भाषा-टीका का प्राधुनिक सरल भाषा रूपान्तर । ___ सम्पादनकर्ता : श्री महेन्द्रसेन जनी । ७-०० जिन शासन के कुछ विचारणीय प्रसंग : श्री पद्मचन्द्र शास्त्री २-०० Jain Monoments: टी० एन० रामचन्द्रन Reality :मा. पूज्यपाद की सर्वार्थसिद्धि का अंग्रेजी में पनुवाद । बड़े पाकार के ३०० प., पक्की जिल्द Just Released : Jain Bibliography (Universal Encyclopaedia of Jain References) (Pages 1945) 2 Volumes Per Set १५.०० सम्पावन परामर्श मण्डल-हा.ज्योतिप्रसाद जैन, श्री लक्ष्मीचन्द्र जैन, सम्पादक-धीपचन्द्र शास्त्री प्रकाशक-रत्नत्रयधारो जैन वीर सेवा मन्दिर के लिए, कुमार बादर्स प्रिंटिंग प्रेस के-१२, नवीन शाहदरा दिल्ली-३२ से मुद्रित।

Loading...

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145