Book Title: Anekant 1982 Book 35 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 114
________________ राजस्थान के इतिहास में नों का योगदान होती रहेगी। सेठ ने मानो जादू कर दिया। थोड़े ही निकले थे उस भयंकर युद्ध में जैन वीर मुहताविसन राजसमय में मेवाड़ राज्य के घाटे के बजट को उन्होंने पर्याप्त पूतों के साथ ही साथ युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त वचत के बजट में परिवर्तित कर दिया। इतना ही नहीं, हुए थे। राठौर दुर्गादास के प्रधान परामर्शदाताओं, सहाउन्होने महाराणा की विपुल व्यय-साध्य गया जी की तीर्थ- यको और सरदारों में आसकरन, रामचन्द्र, दीपावत, यात्रा की भी पूर्ति कर दी और राणा के ऊपर जो भारी खेमती का पुत्र सावतसिंह, जगन्नाथ का पुत्र हेमराज आदि आभार थे उनसे भी उन्हें मुक्त करा दिया। राणा के भंडारी देसीय जैन वीर थे। इन लोगो की सहायता से ही ऊपर अकेले स्वयं जोरावरमल का ही बीस लाख रुपये राजस्थान ने औरगजेब कालीन लम्बे राजपूत युद्ध में ऋण था। सेठ जोरावरमल बाफना की यह प्रशंसनीय मुगल साम्राज्य के छक्के छडा दिये थे। भडारी खीमती सफलता इस बात का ज्वलन्त प्रमाण है कि जो व्यक्ति महाराज अजितसिंह का अत्यन्त विश्वासी सामन्त था। एक व्यापारिक संस्थान का उत्तमता के साथ प्रवघ कर सैयद बन्धुओं के साथ महाराज के कूटनीतिक सबंध उसी सकता है, वह एक राज्य की अर्थव्यवस्था को भी सफलता के द्वारा निष्पन्न हुए थे। अजमेर पर अधिकार होने पर पूर्वक सम्हाल सकता है तथा एक नम्र वणिक उन न्याय- अजितसिंह ने उस महत्वपूर्ण दुर्ग मे भंडारी विजयराज विरोधी तत्वों का तथा राज्य के भ्रष्टाचारी कर्मचारियो और मुहनोत सांगों की नियुक्ति की थी। अहमदाबाद के का, जो कि भूमि एवं व्यापार से होने वाली राजकीय बाहर महाराजा अभयसिंह ने हैदरकुली खा की बर्बर आय के राजकीय कोष में प्रवाहित होते रहने में बाधक सेना पर आक्रमण किया था तो उन्होने अपनी सेना के होते हैं, सफलतापूर्वक दमन करने मे जबर्दस्त सिद्ध हो दक्षिण पक्ष का सेनाध्यक्ष भडारी विडैराज को नियक्त सकता है। किया था और वाम पक्ष स्वय अपने छोटे भाई राजकुमार मेवाड़ की राजनीति में गाधी वंशजो ने भी महत्वपर्ण बक्षसिंह को सौपा था। मध्य भाग का नेतृत्व स्वयं महाभाग लिया। मोमचन्द्र गाधी ने पडयत्र द्वारा भीमसिंह के राज कर रहे थे, और उनकी सहायता जो प्रधान सेनासमय में प्रधान पद प्राप्त किया था और छल-बल से ही नायक और सरदार कर रहे थे उनमे भडारी वश के वह उस पर आरूढ़ रहा । उसमे राजनीतिक दूरदर्शिता गिरधर, रतन, डालो, धनस्थ, विजेराज सेतासियोत, एवं कुटनीतिक योग्यता भी पर्याप्त थी। बहुत समय तक सामलदाम लूनवत, अमरोदेवावत, लक्ष्मीचन्द्र, माईदास, उमने मराठो को मेवाड मे घुसने नहीं दिया और राज- देवीचन्द्र, सिंघवी अचल, जोधमल और जीवन, मुहतावंश पताने में मराठो के प्रभुत्व की जीत का प्रतिरोध करने मे के गोकुल, सुन्दर दासोत, गोपालदास, कल्यानदासोत. भी सफल रहा। अपनी शक्ति बनाए रखने के लिए उसने देवीसिंह, मेघसिंह, रूपमालोत तथा मोदी पाथल, टीकम चुडावतों और शक्तावतों की वंशगत प्रतिद्वन्द्वता की अग्नि आदि प्रमुख वणिक जैन वीर थे। को और अधिक भड़काया । फलस्वरूप रावत अर्जुनमिह इसी प्रकार अम्बर (जयपुर), बीकानेर, कोटा, बदी. वडावत के महलों में ही सोमचन्द्र का वध कर दिया गया। अलवर, सिरोही आदि राजस्थान के अन्य राजपत राज्यों उसके पुत्र सतीचन्द्र ने चूडावतो से पिता की हत्या का मे भी न केवल समृद्ध व्यापारी वर्ग, नगरसेठ, राज्यसेठ बदला लेने के उन्मत्त प्रयत्न में मेवाड़ के पतन का मार्ग आदि के रूप में वणिक जाति उन राज्यो की आर्थिक प्रशस्त कर दिया। उन्नति और समृद्धि का प्रधान साधन रही वरन् प्रधान, मेवाड में ही नही, मारवाड़ में भी इन राजपूतेतरों, दीवान, मत्री, दुर्गपाल, जिलाधीश, सेनानायक आदि अनेक अर्थात जैन बनियों ने पर्याप्त महत्वपूर्ण भाग लिया था। उच्च राजकीय पदो पर रह कर उनके प्रशासन, राजनीमहाराज जसवंतसिंह की मृत्यु के पश्चात जब राठौर तिक जीवन में भी उनके योगदान महत्वपूर्ण रहे है। दर्गादास विश्वासघाती औरंगजेब की सेनाओ के ब्यूह को इतिहास का अर्थ मात्र राजा-महाराजाओ की जय-पराजय भेदकर शिशमहाराज अजितसिंह को लेकर दिल्ली से (शेष पृष्ठ ६ पर)

Loading...

Page Navigation
1 ... 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145