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१० बर्ष ३५, कि०४
अनेका
योग्य बातों एव समुद्री-यात्रा की कठिनाइयों, आदि का माखेट-कीड़ा वर्णन किया है । धवल सेठ जब समुद्री-यात्रा का आरम्भ आखेट-क्रीड़ा की आयोजनाएं प्रायः राज परिवारों में करता है तब उसके पूर्व वह अपने साथ चलने के लिए दस देखने को मिलती है । राजा लोग सदल बल जंगलों में सहस्र सुभटों को निमन्त्रित करता है तथा ध्वजा, छत्र, जाते थे तथा वहाँ सिंह, बाघ, जंगली भैसे एवं हिरण का लम्बे-लम्बे बांस, बड़े-बड़े बर्तन, ईधन, पानी, बारह वर्ष शिकार करते थे । जसहर चरिउ के अनुसार राजा तक के लिए सभी साथियो के लिए अनाज, विविध-खाद्य, यशोमति मृगया हेतु १५०० कुत्तों के साथ जाता था। तिल-तेल, चन्दन आदि सामग्रिया तैयार करता है।
भोजन ___ जहाज में बैठते समय यात्री अपने सिर पर लोहे की
अपभ्रश-काव्यों में भोजनों की चर्चा आहारदान, टोपी धारण करते थे तथा मुद्गर एवं बांस के डण्डे आदि विवाह अथवा अन्य उत्सवों के अवसर पर आई है। कवि हाथ मे धारण करते थे। यह सम्भवत: समुद्री जन्तुओं
स्वयम्भू ने इन खाद्य-पदार्थों के उल्लेख इस प्रकार लिखे एव अन्य भयंकर पक्षियों से सुरक्षित रहने के लिए किया हैं-भात, खीर, सोयवति, घेउर, मंडा, ईख, गुड़, नमक, जाता होगा। इसके लिए यात्रियों को रात्रि-जागरण भी मूंग की दाल, विविध प्रकार के कूर, सालज, माइणी, करना होता था।
माइन्द आलय, पिप्पली, गिरियामलय, असलक, मलूर,
रिमटिका, कचोर, वासुत, पेड़व, पापड़, केला, नारियल, समुद्री-यात्रा के समय अन्य कई कठिनाइयों की भी दही, करमर, करवद, खोले (शर्वत), वक, वाइडण, चर्चा आई है । इनमें सर्वाधिक कठिनाई समुद्री डाकुओं के कारेल, मही, वघारी हुई बडी आदि। आक्रमण से होती थी। समुद्री डाकू सामूहिक रूप में बड़ी उक्त तथ्यो से यह स्पष्ट है कि जपभ्र श कवियों ने भयकरता के साथ आयुधास्त्रों के साथ मालवाहक जहाजों मानव-जीवन के प्रत्येक पहलू को लेकर उन पर हर पर आक्रमण करते थे । धवल सेठ अपने साथियों के साथ दृष्टिकोण से गहन विचार किया है। वस्तुतः अपभ्र श गाता-नाचता एव विविध मनोरजन करता हुआ जब चला साहित्य मध्य
साहित्य मध्यकालीन भारत का एक जीवित प्रामाणिक
चित्र है जो कालदोष से आच्छन्न हो गया और जिस पर जा रहा था । जहाज भी वेग के साथ आगे बढ़ा जा रहा था
गम्भीर एव तुलनात्मक शोध कार्य अत्यावश्यक है । उसके तभी पीछे से भयकर आवाज सुनाई दी लोग निर्णय नहीं अभाव में मध्यकालीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति मे कर सके समुद्री जानवरो ने आक्रमण किया था या प्रामाणिकता एवं पूर्णतया नही आ सकती। डाकुओ ने"।
-महाजन टोली नं०२, आरा (बिहार)
सन्दर्भ सूची १. महापुराण० १।२६२
११. हरिवंश ६११ २. मेहेसर० ७।६
१२. धण्णकुमार० २।५-६ ३. रइध-साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन
१३. उपरिवत्-३९ पृ० ३-६ ।
१४. पउमचरिउ २।१६७ ४. उपरिवत् ।
१५. धण्णकुमार०१७ ५. मेहेसर चरिउ-७११२
१६. धण्णकुमार० ४।१६ ६. सिरिवाल०-३।२
१७. महापुराण सन्धि २१ पुष्पिका ७. महाकवि पुष्पदन्त-पृष्ठ १७३
१८. शास्त्रभक्ति पत्र ८. अपभ्र श भाषा और साहित्य-पृष्ठ २७८
१६. सिरिवाल. ५।१३।१-३
२०. सिरिवाल. २०१२-४ ६. अपभ्र श भाषा और साहित्य, पृष्ठ २७८
२१. उपरिवत् ५।२१।१-१. १०. हरिवंश० १२।१२।१-४
२२. जसहर बरिन ।